Site icon India & World Today | Latest | Breaking News –

राजिम, छत्तीसगढ़ की ऐसी ऐतिहासिक नगरी है, जिसके तार त्रेतायुग से जुड़े हुए हैं।

rajim

गरियाबंद जिले में तीन नदियों के संगम पर स्थित राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग माना जाता है। यहां लगने वाले मेले को लोग चौथे कुंभ के रूप में मानते हैं।

जीवनदायिनी महानदी, पैरी और सोंढुर नदी के संगम बसा राजिम.. आस्था का बड़ा केंद्र बन चुका है। ऐतिहासिक माघ पूर्णिमा में यहां भव्य मेला लगता है जिसमें देशभर के श्रद्धालु शामिल होते हैं। ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्त्व के मन्दिरों में प्राचीन भारतीय संस्कृति और शिल्पकला का अनोखा समन्वय नजर आता है। राजीवलोचन मंदिर का निर्माण तो 8वीं-9वीं सदी का माना जाता है। इस मन्दिर में बारह स्तम्भ हैं। स्तम्भों पर अष्ट भुजा वाली दुर्गा, गंगा – यमुना और भगवान विष्णु के अवतार – राम, वराह और नरसिंह के चित्र बने हुए हैं। राजिम में मिले दो अभिलेखों के अनुसार इस मन्दिर को राजा जगतपाल ने बनवाया थे। इनमें से एक अभिलेख राजा वसंतराज से सम्बंधित है। लक्ष्मण देवालय के एक दूसरे अभिलेख से पता चलता है कि इस मन्दिर को मगध नरेश सूर्यवर्मा की पुत्री और शिवगुप्त की माता ‘वासटा’ ने 8वीं सदी में बनवाया था।

राजीवलोचन मन्दिर के पास नीचे तपस्या करते बुद्ध की प्रतिमा भी स्थापित है। राजिम का प्रसिद्ध राजीवलोचन का मन्दिर चतुर्थाकार में बना है। उत्तर और दक्षिण में प्रवेश
द्वार बने हुए हैं। महामंडप के बीच में गरुड़ हाथ जोड़े खड़े हैं। गर्भगृह के द्वार पर बांये-दांये और ऊपर सर्पाकार मानव आकृति अंकित है । वहीं गर्भगृह में राजीवलोचन भगवान विष्णु का सिंहासन पर विराजमान है। ये प्रतिमा काले पत्थर की बनी विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति है। जिसके हाथों में शंक, चक्र, गदा और पदम है । मंदिर के दोनों दिशाओं में परिक्रमा पथ और भण्डार गृह बना हुआ है। महामण्डप बारह प्रस्तर खम्भों के सहारे निर्मित किया गया है। उत्तर दिशा में जो द्वार है वहां से बाहर निकलने से साक्षी गोपाल के दर्शन होते हैं। इसके साथ ही चारों ओर नृसिंह अवतार, बद्री अवतार, वामनावतार, वराह अवतार के मन्दिर हैं। वहीं दूसरे परिसर में राजराजेश्वर, दान-दानेश्वर और राजिम भक्तिन तेलिन के मंदिर और सती माता का मंदिर है।

इसके बाद नदियों की ओर जाने का रास्ता है। यहां जो द्वार है वह पश्चिम दिशा का मुख्य और प्राचीन द्वार है। जिसके ऊपर राजिम का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र पदमावती पुरि लिखा है। नदी के किनारे भूतेश्वर और पंचेश्वर नाथ महादेव के मंदिर हैं.. और त्रिवेणी के बीच में कुलेश्वर नाथ महादेव का शिवलिंग स्थित है। राजीवलोचन की विग्रह मूर्ति के एक कोने में गजराज को अपनी सूंड में कमल नाल को पकड़े दिखाया गया है। विष्णु की चतुर्भुज मूर्ति में गजराज के द्वारा कमल की भेंट और कहीं नहीं मिलती। इसके बारे में जो कहानी प्रचलित है उसके अनुसार ग्राह के द्वारा प्रताड़ित गजराज ने अपनी सूंड में कमल के फूल को पकड़कर राजीव लोचन को अर्पित किया था। इस कमल के
फूल के माध्यम से गजराज ने अपनी सारी वेदना विष्णु भगवान के सामने बताई थी। विष्णु जी उस समय विश्राम कर रहे थे। महालक्ष्मी उनके पैर दबा रही थीं। गजराज की पीड़ा को देखते ही भगवान ने तुरंत उठकर नंगे पैर दौड़ते हुए राजीव क्षेत्र में पहुंचकर गजराज की रक्षा की थी। राजिम में कुलेश्वर से लगभग 100 गज की दूरी पर दक्षिण की ओर लोमश ॠषि का आश्रम है। यहां बेल के बहुत सारे पेड़ हैं, इसीलिए यह जगह बेलहारी के नाम से जानी जाती है। महर्षि लोमश ने शिव और विष्णु की एकरुपता स्थापित करते हुए हरिहर की उपासना का महामन्त्र दिया है। उन्होंने कहा है कि बिल्व पत्र में विष्णु की शक्ति को अंकित कर शिव को अर्पित करो। कुलेश्वर महादेव की अर्चना
राजिम में आज भी इसी शैली में हुआ करती है।

Exit mobile version