एक तरफ छत्तीसगढ़ में दूसरे फेज की वोटिंग जारी थी तो दूसरी तरफ, प्रदेश में CM फेस कौन होगा इसे लेकर बहस का एक नया मोर्चा खुलता दिखाई दिया। कांग्रेस ने हर बार प्रदेश में सामूहिक नेतृत्व के साथ चुनाव लड़ने की बात कही। यहां तक ही नारों में भी। भूपेश है तो भरोसा है की जगह ‘भरोसे की सरकार, कांग्रेस सरकार’ के नारे के साथ पार्टी ने पूरा चुनावी कैंपेन निपटाया। लेकिन वोटिंग वाले दिन, सत्तापक्ष के दिग्गज चेहरे CM फेस को लेकर ताल ठोकते नजर आए उप-मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा कि, CM फेस के लिए ये आखिरी मौका है। साथ ही खुद की पिछली उपलब्धियों को याद दिलाने का प्रयास भी किया। अब राजनीतिक गलियारों में इसके कई मायने निकाले जा रहे है।
लोकतंत्र के हवन में मतदाता ने अपने मतदान की आहूति दे दीं है। अब 3 दिसंबर को ही पता चलेगा कि कांग्रेस के हाथ में सत्ता आएगी। या फिर बदलाव के लिए कमल फूल पर बटन दबाया गया है। हालांकि दोनों ही पार्टियां लगातार अपनी अपनी जीत के दावा कर रही है।
कांग्रेस जहां 50 से 55 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी का दावा ठोक रही है तो बीजेपी भी 50 से 52 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने का दावा कर रही है। अब जीत का ऊंट किस करवट बैठता है, ये तो 3 दिसंबर को ही स्पष्ट हो पाएगा
दूसरी तरफ वोटिंग के दौरान ही छत्तीसगढ़ कांग्रेस में एक बार फिर मुख्यमंत्री पद को लेकर कलह सामने आ रही है। जबकि परिणाम आने में अभी समय है, लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी कलह का असर अब उभर कर सामने आने लगेगा। अंदर तो आग जगह जगह लगी हुई है, लेकिन पहला धुआं छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर दिखाई दिया।
2018 के चुनाव और कांग्रेस की जीत के बाद छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल सीएम के फार्मूले पर खूब चर्चा हुई थी। यहां तक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समर्थक विधायक दिल्ली कांग्रेस आलाकमान तक पहुंच गए थे। स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि आखिर में वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव को चुनाव के करीब छह महीने पहले उपमुख्यमंत्री बनाकर इस विवाद को टालने की कोशिश की गई थी। ऐस करके 2023 विधानसभा चुनाव तक ये विवाद जरुर टाल दिया गया, लेकिन अगर कांग्रेस सत्ता में फिर लौटी तो कांग्रेस पार्टी के लिए इस बार इस विवाद का टालना या फिर किसी नेता को संतोष कर पाना कतई आसान नहीं होगा।
ऐसा इसलिए कि शुक्रवार को छत्तीसगढ़ के 22 जिलों के 70 विधानसभाओं में वोटिंग के बीच प्रदेश के डिप्टी सीएम टीएस सिंह देव ने एक बड़ा बयान दे दिया है। टीएस बाबा ने भारत बनाम न्यूजीलैंड क्रिकेट सेमीफाइनल का जिक्र करते हुए कहा कि भूपेश बघेल हमारे कप्तान हैं, लेकिन पार्टी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है। याद रखें, रोहित शर्मा कप्तान हैं, विराट कोहली ने शतक बनाया, श्रेयस ने अच्छा खेला, लेकिन मैन ऑफ द मैच मोहम्मद शमी को मिला था। यानि कि बाबा की इस बात को बहुत ही गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी ने कभी भी मेरा नाम आगे नहीं बढ़ाया था। हम एक साझा नेतृत्व के तहत लड़ रहे हैं और भूपेश बघेल इसका नेतृत्व कर रहे हैं। मैंने नहीं सुना कि मेरे नाम को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है। हां, मेरे संपर्क में रहे लोगों के दिमाग में यह बात हमेशा थी।
उधर, अंबिकापुर में मीडिया ने टीएस सिंहदेव से जब सवाल किया कि पिछले बार सरगुजा मुख्यमंत्री की कुर्सी से वंचित हो गया, इस बार क्या आप सीएम बनेंगे। तो उन्होंने संक्षिप्त जवाब देकर अपने इरादे जाहिर कर दिए। उन्होंने कहा, मेरा अब लास्ट टाईम है। उधर, उनके भतीजे आदित्येश्वर की पत्नी त्रिशाला ने कहा, मेरे ससुर मुख्यमंत्री पद के लिए डिजर्व करते हैं। उन्हें सीएम बनना चाहिए।
वहीं पाटन में मतदान खत्म होने के बाद मीडिया से बात करते हुए सीएम भूपेश बघेल से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि कांग्रेस ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा है, लेकिन मुख्यमंत्री कौन बनेगा इसका फैसला नतीजे आने के बाद विधायक दल और हाईकमान करेगा। सीएम से मीडिया ने सवाल किया। टीएस सिंहदेव के परिजन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उनका दावा जता रहे हैं, सीएम ने अपने जवाब में खासतौर पर इस बात पर जोर दिया कि मेरे नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया। इसका मतलब समझा जा सकता है। कांग्रेस के भीतर खाने में मुख्यमंत्री पद को लेकर आपसी खींचतान एक बार फिर जग जाहिर हो रही है। चुनाव होने तक आलाकमान के हस्तक्षेप से किसी तरह यह मामला दबा रहा, सभी धड़े, सभी प्रचार में जुटे रहे। लेकिन अब जब मतदान खत्म हो चुका है तो सभी गुटों के सुर अलग-अलग ताल में नजर आ रहे हैं।
अब इस बयान के अलग अलग मायने निकाले जा रहे। हालांकि अभी तो चुनाव नतीजे भी नहीं आए है, ऐसी बातों की चर्चा का अभी बहुत मतलब भी नहीं होता अगर छत्तीसगढ़ में झगड़ा पुराना नहीं होता। अव्वल तो ये सब इस बात पर निर्भर करता है कि कांग्रेस चुनाव जीतने के बाद भी सीटें कितना ला पाती है और विधायकों में कितने किसके समर्थक होते हैं। जोर आजमाइश तो समर्थक विधायकों के नंबर से ही हो पाएगा।
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