छत्तीसगढ़ की मितान परंपरा

छत्तीसगढ़ अपनी कई बातों के लिए प्रसिद्ध है जिसे आज हम फ्रेंडशिप का रिश्ता कहते हैं, उसे इस प्रदेश में मितान-मितानिन का नाम दिया गया है। यह छत्तीसगढ़ की एक ख़ास और पुरानी परंपरा है। जब तक आप इस परंपरा को पूरी तरह नहीं समझेंगे, ये आपको आम दोस्ती जैसी ही लगेगी, लेकिन जब आप इसे समझने की कोशिश करोगे, तब आपको पता चलेगा, कि ये भी जन्म-जन्म का बंधन है आज हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ की एक ख़ास और पुरानी परंपरा की, जिसका नाम है “मितान-मितानिन।”

लोग इस परंपरा को लेकर कहते हैं, पहले के ज़माने में आज की तरह फ्रेंडशिप-डे जैसी चीज़ें नहीं होती थी। लोग भी एक-दूसरे को भेदभाव व छुआछूत की नज़र से देखते थे। एक जाति के लोग दूसरे जाति के लोगों के साथ मिलकर या बैठकर खाना नहीं खाते थे। इसी बीच मितान-मितानिन परंपरा की शुरुआत की गयी ताकि इन दूरियों को खत्म किया जा सके।

छत्तीसगढ़ी भाषा में मितान का अर्थ होता है मित्र,सखा, दोस्त। मितान पुरुष मित्र होते हैं। मितान किसी भी अन्य लड़के के साथ बद सकता है। बदना का मतलब है , तय करना या एक बंधन में बंधना। जिसके बाद दो व्यक्तियों का परिवार एक हो जाता है। सुख-दुःख में वह बराबर के हिस्सेदार बन जाते हैं।

मितान का अगर अर्थ समझा जाए तो इसका मतलब होता है सुख-दुःख का साथी होना। किसी के यहां शादी हो या मुंडन, मितान हर क़दम पर एक दूसरे के साथ होंगे।

मितानिन, महिला मित्र होती हैं। जब महिलाएं या लड़कियां मितान बदती हैं तो वे मितानिन कहलाती हैं।

जानें कैसे बदता है मितान-मितानिन का रिश्ता

अगर किसी लड़के का दूसरे लड़के से अच्छा रिश्ता होता है। दोनों के बीच एक-दूसरे के लिए आदर होता है। परिवार में ताल-मेल और एक-दूसरे से चेहरा मिलता है तो लोग उन्हें एक-दूसरे से मितान बदने की सोच लेते हैं।

मितान का मतलब, दो लड़कों के बीच की दोस्ती और मितानिन का मतलब, दो लड़कियों के बीच का रिश्ता होता है। इस परंपरा में एक लड़का और एक लड़की मितान या मितानिन नहीं बदते।

जब मितान और मितानिन का रिश्ता बदता है तो इसमें परिवारों की भी बड़ी भूमिका होती है। दोनों परिवार वाले एक हाथ से दूसरे हाथ में नारियल लेते और देते हैं। यह वादा किया जाता है कि वह दोनों एक-दूसरे के सुख-दुःख के साथी होंगे। हमेशा साथ रहेंगे। एक-दूसरे के परिवार को अपना मानेंगे। यह बोलकर दोनों लड़के व दोनों लड़कियां 7 बार एक-दूसरे को गले लगाते हैं। इस तरह वह मितान और मितानिन के रिश्ते के बंधन में बंध जाते हैं।

अगर लड़का या लड़की किसी और जाति से भी हैं तो भी मितान-मितानिन का रिश्ता बंध जाता है। रिश्ते का जुड़ाव होने के बाद दोनों परिवारों के बीच नया परिवार बनाया जाता है। इसके बाद मितान की माँ को माँ, पापा को पापा और बहन को बहन आदि परिवार के सदस्यों को मितान के रिश्ते के अनुसार बोला जाता है।

मितान एक-दूसरे का नाम नहीं लेते, मितान, महाप्रसाद कह कर संबोधित करते हैं। मितान की पत्नी का भी नाम नहीं लिया जाता। जब दो लोग मितान बनते हैं तो दोनों की पत्नियां स्वत: मितानिन हो जाती हैं। वहीं जब बच्चे मितान बनते हैं तो उनके माता-पिता स्वत: मितान हो जाते हैं।

मितान की पत्नी से उसी तरह दूरी बनाकर रखी जाती है जिस तरह छोटे भाई की पत्नी से। मितान के आगे मितानिन सिर पर पल्लू करती हैं और दूरी बनाकर बात करती है। साथ में उठना-बैठना नहीं होता। यानि कि एक खाट, बेंच पर दोनों एक साथ नहीं बैठ सकते। वाहन में तो एक साथ बैठ सकते हैं, पर एक-दो की आड़ में। मतलब जिस तरह से पुराने रीति-रिवाजों में जेठ से बहुओं पल्ला रखती थी। कुछ वैसा ही रिवाज यहां भी होता है।

किस-किस कार्यक्रम में बन सकते हैं मितान

देवस्थल के सामने किसी भी अवसर पर मितान बदा जा सकता है। सार्वजनिक समारोह अथवा किसी आयोजन, पारिवारिक कार्यक्रम में मितान परंपरा में बदा जा सकता है। कथा स्थल, धार्मिक आयोजन, अखंड रामायण, यज्ञ आदि अवसरों पर मितान बनने पर उसे महाप्रसाद नाम दिया जाता है। नवरात्र में मितान बनने पर उसे महिलाओं के लिए भोजली या जंवारा नाम दिया जाता है। रथयात्रा के दौरान मितान बनने पर महिलाओं के लिए इसे गजामूंग नाम दिया जाता है।

मितान-मितानिन परंपरा के हैं कई प्रकार

  1. गंगाजल – गंगाजल को पवित्रता का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। दो लोग जब मितान बदते हैं तो गंगाजल का आदान-प्रदान कर समाज के सामने मितान बनते हैं।
  2. भोजली – भोजली का मतलब है भू में जल होना। इसे उत्तर भारत मे कजलइयाँ कहा जाता है। यह मुख्यतः गेंहूँ के अंकुरित पौधे होते हैं जिसे सावन की शुक्ल अष्टमी को एक-दूसरे को कानों में खोंसकर मितान बदा जाता है। छत्तीसगढ़ में मशहूर अभिवादन वाक्य (बधाई) ‘सीताराम भोजली’ इसी से बना है।
  3. जंवारा – इस तरह का मितान नवरात्रि के समय बदा जाता है क्योंकि उसी समय दुर्गोत्सव का जंवारा बोया जाता है। जंवारा का मतलब गेंहूँ के अंकुरित पौधे। इन्हीं पौधों का आदान-प्रदान कर जंवारा मितान बदा जाता है। जंवारा शब्द छत्तीसगढ़ी गीतों में ‘ए मोर/हाय मोर जंवारा’ के रूप में लोगों ने आमतौर पर सुनते हैं।
  4. सैनांव – इनमें जब दो व्यक्तियों का नाम एक ही जैसा होता है तो उन दोनों के द्वारा बदे (तय करना) गए मितान परंपरा को सैनांव मितान कहा जाता है।

देखा जाए तो मितान छत्तीसगढ़ की एक ऐसी परंपरा जिसमें सिर्फ दो लोग ही नहीं बल्कि दो परिवार भी पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए रिश्ते में बंध जाते हैं। आज आधुनिक युग में यह परंपरा एक हद तक लुप्त भी हो गयी है पर छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में लोगों ने आज भी इस परंपरा को जीवित रखा हुआ है।

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