राजस्थान के उदयपुर में सीसीआरटी क्षेत्रीय केंद्र में 10 दिवसीय कार्यशाला “विद्यालयी शिक्षा में हस्तकला कौशल का समावेश” विषय पर आयोजित की गई थी।यह कार्यशाला 3 से 12 जनवरी 2024 के अंतर्गत आयोजित की गई , जिसमें 14 राज्यों से 97 शिक्षक/शिक्षिकाओ ने भाग लिया। जिसमें छत्तीसगढ़ से कुल 13 प्रतिभागी भी शामिल हुए । ये सभी प्रतिभागी आज अपने गृह ग्राम लौट आए हैं। और उन्होंने बताया कि इस प्रशिक्षण में विद्यालयी शिक्षा में हस्तकला को बढ़ावा देने के साथ- साथ पढ़ाई में किस प्रकार भारतीय संस्कृति को समाहित किया जाना है, जिससे छात्रों में संस्कार और अपने पूर्वजों के धरोहर के प्रति सम्मान का भाव जागरूक हो सके ये सिखाया गया।।
छत्तीसगढ़ से शामिल 13 प्रतिभागी श्रीमती रीतामंडल रायपुर, श्री मिलिंद कुमार यादव शक्ति, सुश्री सोनम तंबोली जांजगीर, श्री एवेन्द्र कुमार जायसवाल रायपुर,लकेश्वर दास कोरिया, श्री संजय कुमार यादव बीजापुर , श्री कुंवर सिंह मरकाम धमतरी,श्रीमती इंदू सोनकर दुर्ग, शेष नारायण दुर्ग, अनुभा झा रायपुर,श्रीमती पूर्णिमा यादव दुर्ग, श्रीमती हिमोनी बघेल दुर्ग जिले से शामिल होकर छत्तीसगढ़ की संस्कृति को पूरे भारत वर्ष में संप्रेषित किया।
जशपुर जिले से शामिल शिक्षक श्री मुकेश कुमार ने बताया की उक्त प्रशिक्षण में विभिन्न हस्तकला जैसे मकरम,बुक बाइंडिंग,पेपर बैग, टाई एंड डाई, मिट्टी के खिलौने बनाना एवम प्राकृतिक अपशिष्ट से खिलौना कैसे बनाकर विद्यार्थियों की क्रिएटिविटी को बढ़ाना आदि विषय पर प्रशिक्षण प्राप्त किया,साथ ही अलग-अलग भाषाओं में गीत भी सीखे । इस प्रशिक्षण में उदयपुर स्थित महाराणा प्रताप से संबंधित स्थल का भी दर्शन कराया गया जैसे मोती मगरी, फतेहसागर झील,लोककला मंडल,शिल्पग्राम, आहड़ म्यूजियम, आदि जो वहां की सांस्कृतिक धरोहर है।
क्या है CCRT?
सांस्कृतिक संसाधन एवं प्रशिक्षण केंद्र (सीसीआरटी) शिक्षा को संस्कृति से जोड़ने के क्षेत्र में काम करने वाले प्रमुख संस्थानों में से एक है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। इनका काम शिक्षक/शिक्षिकाओं और छात्र/छात्राओं के लिए भारतीय संस्कृति पर सैद्धान्तिक एवं विषय-वस्तु आधारित शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित करना ।विद्यालयीन-पाठ्यक्रम में शिल्पकला के व्यावहारिक ज्ञान को समाहित करने के लिए प्रशिक्षण व कार्यशालाएं आयोजित करना । अपने देश की क्षेत्रीय विविधता तथा सांस्कृतिक समृद्धि के प्रति जागृति एवं समझ के लिए नाटक, संगीत, आख्यान परंपराओं, लोक एवं शास्त्रीय नृत्यों इत्यादि, विविध गतिविधियों के विषय में कार्यशालाएं आयोजित करना आदि है।