Maa Kushmanda : नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा और व्रत का विशेष महत्व होता है। रविवार को कूष्मांडा माता का पूजन किया जाएगा। ऐसा माना जाता है कि देवी कूष्मांडा ने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी, इसलिए इन्हें सृष्टि की आदिशक्ति के रूप में पूजनीय माना गया है। उनके शांत, सौम्य और मोहक रूप को देखकर भक्तगण उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं।
कूष्मांडा माता का स्वरूप
देवी कूष्मांडा का स्वरूप बेहद अद्भुत और शक्तिशाली है। उनकी आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। प्रत्येक भुजा में अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र और प्रतीक रखे गए हैं। उनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृत से भरा कलश, चक्र और गदा सुशोभित हैं। आठवें हाथ में देवी सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जाप माला धारण करती हैं। उनकी सवारी सिंह है, जो उनके साहस और शक्ति का प्रतीक है।
देवी कूष्मांडा की महिमा
कूष्मांडा माता को सृष्टि की रचना करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पहले सारा संसार अंधकार में डूबा हुआ था। तभी देवी कूष्मांडा ने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड का सृजन किया और इसीलिए उनका नाम कूष्मांडा पड़ा। देवी के पूजन से भक्तों को उनके सभी कष्टों, रोगों और शोकों से मुक्ति मिलती है। साथ ही, दीर्घायु, यश और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार, देवी कूष्मांडा इस चराचर जगत की अधिष्ठात्री हैं और उनकी कृपा से जीवन में संतुलन और शांति की स्थापना होती है।
देवी का निवास स्थान
देवी कूष्मांडा का निवास स्थान सूर्य मंडल के मध्य में स्थित है। वह इस ब्रह्मांड की प्रकाशशक्ति हैं और सूर्य मंडल को अपने संकेतों से नियंत्रित रखती हैं। यही कारण है कि उनकी पूजा विशेष रूप से सूर्य की शक्तियों को संतुलित करने और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती है। नवरात्रि के चौथे दिन, शक्ति के अन्य रूपों की भांति देवी कूष्मांडा की पूजा का विधान भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। भक्तगण इस दिन उनके आशीर्वाद से अपने जीवन में ऊर्जा, शक्ति और प्रकाश का संचार करने की कामना करते हैं।
पूजा की सामग्री
देवी कूष्मांडा की पूजा में विशेष रूप से पीले रंग का महत्व होता है। इसलिए उनकी पूजा में पीले वस्त्र, पीली मिठाई, और पीले चूड़ियों का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा पूजा सामग्री में कलावा, कुमकुम, अक्षत, घी, धूप, चंदन और तिल का भी प्रयोग किया जाता है। भक्तगण इन वस्तुओं के माध्यम से देवी की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
पूजा विधि
माता कूष्मांडा की पूजा के लिए सबसे पहले पवित्र स्नान करना चाहिए और फिर पीले वस्त्र धारण करें। पूजा में कलश स्थापना करें और कलश में उपस्थित देवी-देवताओं की पूजा करें। इसके पश्चात अन्य देवी-देवताओं के साथ माता कूष्मांडा की विशेष रूप से पूजा की जाती है।
पंचामृत से देवी का स्नान कराएं और शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इसके बाद लाल फूल, कुमकुम और पीले चंदन का तिलक लगाकर देवी को फल और मिठाई का भोग अर्पित करें। भक्तिमय होकर देवी की आरती करें और “ॐ कुष्माण्डायै नमः” मंत्र का जाप करें। पूजा में किसी प्रकार की त्रुटि हो जाए, तो अंत में क्षमा प्रार्थना अवश्य करें। पूजा समाप्ति के बाद शंखनाद करें और गंगा जल से प्रसाद को शुद्ध कर घर के सदस्यों और अन्य भक्तों में प्रसाद का वितरण करें।
विशेष मंत्र
पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करें और पवित्र मन से देवी का ध्यान करें। देवी कूष्मांडा का ध्यान करते समय निम्नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिए:
“सुरासंपूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे॥”
इस मंत्र का जाप करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है और सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है।