महासमुंद में बांस नहीं मिलने से संकट में बांसवार समाज, रोजगार और परंपरा दोनों पर मंडरा रहा खतरा

महासमुंद। पारंपरिक रूप से बांस पर आश्रित महासमुंद जिले की बांसवार जाति के सामने आजीविका का गंभीर संकट खड़ा हो गया है। बीते 10 वर्षों से इन्हें बांस की आपूर्ति नहीं हो पा रही है, जिससे इनका परंपरागत रोजगार पूरी तरह से ठप हो गया है। सूपा, टोकरी, टोकरा जैसे बांस से बने उपयोगी और फैंसी सामान बनाकर जीवन यापन करने वाले इन परिवारों के सामने अब दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा हो गया है।

शासन के नियम हैं, लेकिन अमल नहीं
नियमानुसार जिन बांसवार परिवारों के पास “बांस कार्ड” है, उन्हें हर साल वन विभाग की ओर से 1500 बांस रियायती दर पर उपलब्ध कराए जाने चाहिए। लेकिन खैरा गांव के लगभग 30 बांसवार परिवारों का आरोप है कि न तो उन्हें बांस मिल रहा है और न ही किसी प्रकार का मुआवजा। मजबूरी में अब ये लोग दिहाड़ी मजदूरी कर पेट पालने को मजबूर हैं।

दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं ग्रामीण
ग्रामीणों का कहना है कि वे पिछले एक दशक से वन विभाग और कलेक्टर कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकला है। जब भी कभी बांस डिपो में बांस आता भी है, तो वह इतना पतला और कमजोर होता है कि उनके काम के लायक नहीं होता।

“हमारे पास हुनर है, लेकिन कच्चा माल नहीं”
बांसवार समाज के बंसत कुमार कंडरा ने कहा, “हमारे पास पीढ़ियों से चला आ रहा हुनर है, लेकिन अब बांस नहीं मिल रहा है। दस साल से परेशान हैं, कोई सुनवाई नहीं हो रही।” वहीं, नंदिनी कंडरा बताती हैं, “महिला समूह के पास भी काम नहीं है, बच्चे भूखे हैं, और हमारा पूरा जीवन थम सा गया है।”

वन विभाग ने मानी बांस की कमी
इस संबंध में महासमुंद के डीएफओ वेंकटेश एम.जी. ने कहा, “फिलहाल जिले में बांस की उपलब्धता नहीं है। हमने उच्च अधिकारियों को इसकी जानकारी दी है और रायपुर, धमतरी जैसे जिलों से बांस मंगवाने का प्रयास किया जा रहा है।”

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