छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियान को बड़ी कामयाबी, बसव राजू समेत 27 नक्सली ढेर – सीएम ने बताया निर्णायक मोड़

रायपुर। छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियान को अब तक की सबसे बड़ी सफलता मिली है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने रायपुर के न्यू सर्किट हाउस में आयोजित प्रेस वार्ता में बताया कि अबूझमाड़ इलाके में सुरक्षाबलों ने 27 कुख्यात नक्सलियों को मार गिराया है, जिनमें माओवादी सेंट्रल कमेटी का शीर्ष नेता और ₹3.25 करोड़ का इनामी बसव राजू भी शामिल है। मुख्यमंत्री ने इसे नक्सलवाद के खिलाफ निर्णायक मोड़ बताते हुए कहा कि बस्तर अब शांति की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

तीन दशक बाद इतनी बड़ी सफलता

मुख्यमंत्री ने बताया कि बसव राजू नक्सल आंदोलन की रीढ़ माना जाता था। पिछले तीन दशकों में माओवादी सेंट्रल कमेटी के किसी बड़े नेता को पहली बार सुरक्षा बलों ने ढेर किया है। उन्होंने कहा कि कई महीनों से इनपुट मिल रहे थे कि कर्रेगुड़ा की पहाड़ियों में नक्सलियों का जमावड़ा है। इस ऑपरेशन की सफलता पर मुख्यमंत्री ने सुरक्षा बलों की सराहना करते हुए कहा, “हमें जवानों के साहस पर गर्व है।”

डबल इंजन सरकार का असर

मुख्यमंत्री साय ने कहा कि नक्सलवाद के खिलाफ अभियान में केंद्र और राज्य सरकार मिलकर काम कर रही हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लगातार छत्तीसगढ़ के दौरे पर आते रहे हैं और सुरक्षा रणनीति को दिशा दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि सरकार ने नक्सलियों के लिए बेहतर पुनर्वास नीति भी बनाई है। यदि कोई इनामी नक्सली आत्मसमर्पण करता है, तो उसे जमीन तक देने की व्यवस्था है।

गृह मंत्री का बयान – 2026 तक नक्सलवाद का समूल खात्मा

गृह मंत्री विजय शर्मा ने कहा कि भाजपा सरकार बनने के बाद से अब तक 424 नक्सली मारे जा चुके हैं और 1355 ने आत्मसमर्पण किया है। उन्होंने कहा कि मार्च 2026 तक नक्सलवाद का जड़ से खात्मा करने का लक्ष्य रखा गया है। उनका कहना था कि अब बस्तर की जनता लोकतंत्र चाहती है और सरकार उसी दिशा में काम कर रही है।

एडीजी का खुलासा – जंगल में तीन दिन चला ऑपरेशन

नक्सल ऑपरेशन के एडीजी विवेकानंद ने बताया कि यह ऑपरेशन छत्तीसगढ़ के इतिहास में सबसे बड़ा है। बसव राजू का मारा जाना एक मील का पत्थर है। उन्होंने बताया कि अबूझमाड़ को अब तक सुरक्षा विहीन क्षेत्र माना जाता था, लेकिन बीते डेढ़ साल में वहां सुरक्षा कैंप खोले गए। इसके बावजूद ऑपरेशन कैंप से 35 किलोमीटर भीतर जंगल में चलाया गया और तीन दिन से ज्यादा समय तक फोर्स जंगल में डटी रही।

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