बिलासपुर। राजधानी रायपुर स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल अस्पताल में फैली अव्यवस्थाओं और मरीजों को हो रही गंभीर परेशानियों को लेकर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आए तथ्यों पर संज्ञान लेते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के सचिव से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा था, लेकिन निर्धारित समय पर सरकार की ओर से कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया।
महाधिवक्ता ने मांगा अतिरिक्त समय, कोर्ट ने दी मोहलत
सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ सरकार के महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन भारत ने कोर्ट से अतिरिक्त समय की मांग की। उन्होंने कहा कि हलफनामा तैयार किया जा रहा है, जिसे प्रस्तुत करने के लिए कुछ और समय की आवश्यकता है। इस पर चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की बेंच ने आग्रह को स्वीकार करते हुए मामले की अगली सुनवाई 10 जून को सूचीबद्ध कर दी है।
मीडिया रिपोर्ट में उजागर हुई अस्पताल की भयावह तस्वीर
गौरतलब है कि 27 मई को चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा की डिवीजन बेंच ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए गंभीर नाराजगी जताई थी। मीडिया रिपोर्ट्स में खुलासा हुआ था कि प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में हड्डी टूटने, गंभीर चोट, फ्रैक्चर और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को सर्जरी के लिए 15 से 20 दिन तक का लंबा इंतजार करना पड़ रहा है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कई बार मरीजों को ऑपरेशन थियेटर तक ले जाकर बिना सर्जरी किए वापस लौटा दिया जाता है, जिससे उनकी जान जोखिम में पड़ जाती है। मरीजों के साथ मौजूद परिजनों ने आरोप लगाया कि उन्हें बिना कोई वजह बताए लौटाया जाता है और जब वे विरोध करते हैं तो डॉक्टर और स्टाफ उन्हें निजी अस्पताल में इलाज कराने की सलाह देते हैं।
सिर्फ 1-2 डॉक्टर, 29 ऑपरेशन थियेटर बेकार
जानकारी के अनुसार, अंबेडकर अस्पताल में कुल 29 छोटे-बड़े ऑपरेशन थियेटर हैं, लेकिन इन सभी के लिए मात्र 1-2 डॉक्टर ही उपलब्ध हैं। अस्पताल में रोजाना दर्जनों दुर्घटना, कैंसर और गंभीर रोगों के मरीज पहुंचते हैं। इनमें से कई मरीज ऐसे हैं जो एक महीने से अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के पास इंतजार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता।
तनावपूर्ण माहौल, तीखी नोकझोंक और मारपीट तक की नौबत
इन हालातों के कारण अस्पताल में तनावपूर्ण माहौल बना रहता है। ऑपरेशन टलने की वजह से कई बार मरीजों के परिजन अपना धैर्य खो देते हैं। डॉक्टरों और अस्पताल प्रबंधन से तीखी नोकझोंक और कभी-कभी झगड़े की स्थिति बन जाती है। यह स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है और राज्य के स्वास्थ्य ढांचे पर सवाल उठाती है।
हाई कोर्ट की सख्ती बनी हुई है
हाई कोर्ट ने इस संवेदनशील मामले में शासन की लापरवाही पर चिंता जताई है और स्पष्ट किया है कि अब सरकार को इस पर जवाबदेह होना ही पड़ेगा। सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग से व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। अगली सुनवाई 10 जून को होगी, जिसमें कोर्ट द्वारा आगे की कड़ी कार्रवाई की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।