रायपुर लौटे नक्सल पीड़ितों ने सुनाया दर्द, कहा – बस्तर की जनता शांति चाहती है

रायपुर। देश की राजधानी दिल्ली से लौटे नक्सल पीड़ितों ने रविवार को रायपुर में अपना दर्द बयां किया। बस्तर शांति समिति के सदस्य जयराम दास ने बताया कि बीते चार दशकों में नक्सली हिंसा ने हजारों आदिवासियों और पुलिसकर्मियों की जान ले ली है। उन्होंने कहा कि जब बस्तर की आम जनता ने नक्सलवाद के खिलाफ सलवा जुडूम आंदोलन शुरू किया, तब कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने इस आवाज को दबाने की कोशिश की।

सलवा जुडूम पर बैन का जिक्र

नक्सल पीड़ितों का कहना है कि बुद्धिजीवियों की ओर से की गई याचिका पर 2011 में बी. सुदर्शन रेड्डी ने सलवा जुडूम आंदोलन को प्रतिबंधित कर दिया था। पीड़ितों ने सांसदों से अपील की है कि उपराष्ट्रपति पद के विपक्षी उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को समर्थन न दिया जाए, क्योंकि उनके फैसले से नक्सलियों का मनोबल बढ़ा और निर्दोष ग्रामीणों की जानें गईं।

नक्सली हमलों की दर्दनाक दास्तां

कांकेर जिले के सियाराम रामटेके ने बताया कि 9 अक्टूबर 2022 को वे अपने खेत का निरीक्षण कर रहे थे, तभी नक्सलियों ने उन पर गोली चला दी। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद वे किसी तरह बच निकले।
वहीं कोंडागांव के एक अन्य पीड़ित ने कहा कि वर्ष 2014 में जब वे अपने भाई के साथ बाजार गए थे, तभी नक्सलियों ने उन पर हमला किया। गोली लगने से वे घायल हुए जबकि उनके भाई को पकड़कर नक्सलियों ने बेरहमी से हत्या कर दी।

शांति की चाहत

नक्सल पीड़ितों ने साफ कहा कि बस्तर छत्तीसगढ़ की आत्मा है और वहां की जनता अब शांति चाहती है। उन्होंने जोर दिया कि नक्सलवाद ने विकास की रफ्तार को रोक दिया है और लोगों की पीढ़ियां हिंसा के भय में जी रही हैं।


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