3 साल में एक बार मनाया जाता है देव जन्म, महाशिवरात्रि पर मां दंतेश्वरी मंदिर में होती है पूजा

छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर अंचल में देव जन्म की एक अनोखी परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह परंपरा इतनी खास है कि यह हर तीन साल में एक बार मनाई जाती है, और महाशिवरात्रि के पावन दिन दोनों बांस रूपी देवी देवता के साथ एक भव्य जात्रा निकाली जाती है।

ज्योत प्रज्वलन और देव जगारनी:

महाशिवरात्रि के दिन मां दंतेश्वरी मंदिर परिसर के 5 पांडव मंदिर में ज्योत प्रज्वलित किया जाता है, जिसे देव जगारनी के नाम से जाना जाता है। यह ज्योत देवता के आगमन का प्रतीक है।

पांच दिवसीय उत्सव:

ज्योत प्रज्वलन के बाद पांच दिनों तक इस क्षेत्र के सीरहा गुनिया नामक समुदाय के लोग देवता के स्वागत में नृत्य और गायन करते हैं। यह नृत्य और गायन देवता के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है।

देव जन्म का कार्यक्रम:

पांच दिवसीय उत्सव के बाद देव जन्म का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इस कार्यक्रम में बांस के दो पौधों को देवी और देवता के रूप में पूजा जाता है और उनकी शादी कराई जाती है। यह विवाह प्रकृति और जीवन के चक्र का प्रतीक है।

मां दंतेश्वरी मंदिर में स्थापना:

देवी और देवता के रूप में पूजित बांस के पौधों को मां दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित किया जाता है, जहां श्रद्धालु उनका दर्शन करते हैं और उन्हें पूजा अर्चना करते हैं।

देव जन्म का महत्व:

देव जन्म की यह परंपरा दक्षिण बस्तर के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह परंपरा न केवल देवता के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह प्रकृति और जीवन के चक्र का भी प्रतीक है। यह परंपरा लोगों को एकजुट करती है और उन्हें अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़ती है।

यह अनोखी परंपरा दक्षिण बस्तर की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक है।

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