Raipur : बस्तर के घने जंगलों में इन दिनों चार के पेड़ फल से लदे हुए हैं। इन फलों से निकलने वाले बीज को चिरौंजी कहा जाता है, जो कि बाजार में 1000 से 1200 रुपये प्रति किलो के भाव से बिकता है।
लेकिन दुर्भाग्यवश, ग्रामीण चिरौंजी के बजाय चार गुठली को ही व्यापारियों के पास औने-पौने दाम पर बेच देते हैं।
वन विभाग द्वारा चिरौंजी गुठली का समर्थन मूल्य 109 रुपये प्रति किलो निर्धारित किया गया है, और इसकी खरीदी समितियों को सौंपी गई है।
लेकिन, खरीदी की व्यवस्था में खामियों के कारण ग्रामीणों को चिरौंजी का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है, और वे इसे मजबूरन कम दामों पर व्यापारियों को बेच देते हैं।
बस्तर में प्रत्येक गांव में “माटी व आम” त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार के दौरान, नए फल को सबसे पहले देवी-देवता को अर्पण किया जाता है, और उसके बाद ही ग्रामीण इसका सेवन करते हैं।
मान्यता है कि यदि कोई देवी-देवता को अर्पण किए बिना ही फल का सेवन कर लेता है, तो गांव में किसी भी तरह की अनहोनी होने का खतरा बने रहता है।
चिरौंजी एक बहुमूल्य वन उत्पाद है, जिससे ग्रामीणों को अच्छी आय प्राप्त हो सकती है।
लेकिन, समर्थन मूल्य और खरीदी व्यवस्था में सुधार के अभाव में उन्हें इसका उचित लाभ नहीं मिल पा रहा है।