बस्तर अंचल में वनोपज व्यापार: मंडरा रहे संकट के बादल

पिछले कुछ वर्षों से बस्तर अंचल के हाट बाजारों में वनोपज की आवक में गिरावट देखी जा रही है, जिससे वनोपज व्यापार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। जानकारों का मानना है कि यह कमी घटते जंगलों और मौसम में बदलाव के कारण हो रही है। जंगलों में पौधरोपण में भी कमी आई है, जो इस समस्या को और बढ़ा रही है।

बस्तर अंचल में वनोपज संग्रह और व्यापार आदिवासियों के जीवन का मुख्य आधार रहा है। जंगलों से इकट्ठा किए गए महुआ, चिरौंजी, इमली जैसे वनोपजों को हाट बाजारों और सरकारी क्रय केंद्रों में बेचा जाता है।

लेकिन इस साल, महुआ, चिरौंजी और इमली की आवक में भारी गिरावट दर्ज की गई है। व्यापारियों का कहना है कि मांग बढ़ने के कारण वनोपजों की कीमतें बढ़ रही हैं, लेकिन कम आपूर्ति के कारण उनका व्यापार प्रभावित हो रहा है।

इस स्थिति को लेकर चिंता जताई जा रही है कि यदि यही स्थिति रही तो आने वाले कुछ सालों में बस्तर के हाट बाजारों में वनोपज व्यापार पूरी तरह ठप हो सकता है। इससे वनोपज पर निर्भर आदिवासियों की आय का मुख्य जरिया छिन जाएगा।

संभावित कारण:

  • जंगलों का घटना: अंधाधुंध कटाई और अवैध वन गतिविधियों के कारण बस्तर के जंगल तेजी से घट रहे हैं।
  • मौसम में बदलाव: जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान और वर्षा पैटर्न में बदलाव हो रहा है, जिसका असर वनस्पतियों पर पड़ रहा है।
  • पौधरोपण में कमी: वन विभाग द्वारा वृक्षारोपण अभियानों में कमी आई है, जिसके परिणामस्वरूप युवा पेड़ों की कमी हो रही है।
  • आदिवासियों का पलायन: बेहतर जीवन और रोजगार के अवसरों की तलाश में आदिवासी जंगलों से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, जिसके कारण वनोपज संग्रह में कमी आ रही है।

यह आवश्यक है कि सरकार, वन विभाग और स्थानीय समुदाय मिलकर इस समस्या का समाधान ढूंढें। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो बस्तर अंचल की समृद्ध वनस्पति विविधता और आदिवासी समुदायों की आजीविका को गंभीर खतरा हो सकता है।

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