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Acharya Vidyasagar Samadhi : आचार्य विद्यासागर महामुनिराज की समाधि

Acharya Vidyasagar Maharaj

Acharya Vidyasagar Maharaj

Acharya Vidyasagar Samadhi : संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी महामुनिराज ने 17 फरवरी 2024 को छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरी तीर्थ में समाधि ले ली। 3 दिनों के उपवास के बाद रात 2:30 बजे वे ब्रह्मलीन हुए। उनके समाधि लेने से पूरे जैन समाज में शोक की लहर है।

आचार्य विद्यासागर जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के सदलगा गांव में हुआ था। उन्होंने 7 वर्ष की आयु में जैन मुनि विद्यानंदजी से दीक्षा ली और 12 वर्ष की आयु में मुनि दीक्षा प्राप्त की। 1972 में उन्हें आचार्य पद प्राप्त हुआ।

यह ज्ञात है कि उनके माता-पिता और सभी भाई-बहनों ने भी जैनीश्वरी दीक्षा ली थी। आचार्य विद्यासागर कन्नड़, हिंदी और संस्कृत भाषाओं के विशेषज्ञ थे, साथ ही उन्हें कई अन्य भाषाओं का भी ज्ञान था। वे हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक थे और भारत को “भारत” बोलने का आह्वान करते थे। 1968 से दिगंबर अवस्था में रहते हुए उन्होंने कभी भी वाहन का उपयोग नहीं किया। वे अनियत विहार करते थे, यानी बिना किसी पूर्व सूचना के यात्रा करते थे।

उन्होंने दही, शक्कर, नमक, तेल, फल, सूखे मेवे, हरी सब्जी, पांच रसों और अंग्रेजी दवाओं का आजीवन त्याग किया। कठोर ठंड में भी उन्होंने कभी चटाई का उपयोग नहीं किया। उन्होंने भौतिक संसाधनों के साथ ही थूकने का भी त्याग किया था।

आचार्य विद्यासागर जी ने शिक्षा और सामाजिक सुधारों पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने बाल विवाह, दहेज प्रथा, जातिवाद जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने अनेक शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की और गरीबों एवं वंचितों के लिए अनेक योजनाएं चलाईं।

आचार्य श्री विद्यासागर जी का जीवन एक प्रेरणादायी कहानी है। उन्होंने अपना जीवन समाज के उत्थान और विकास में समर्पित कर दिया। उनके विचार और कार्य सदैव प्रेरणा देते रहेंगे। मध्य प्रदेश सरकार ने आचार्य श्री विद्यासागर जी के निधन पर आधे दिन का राजकीय शोक घोषित कर दिया है।

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