पूर्व कुलपति प्रो अशोक सिंह पर 54 लाख के अधिक वेतन भुगतान का आरोप, विश्वविद्यालय ने भेजा नोटिस

अंबिकापुर (छत्तीसगढ़): संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय, सरगुजा के पूर्व कुलपति प्रोफेसर अशोक सिंह पर गंभीर वित्तीय अनियमितता का आरोप लगा है। विश्वविद्यालय प्रशासन का दावा है कि उन्हें वेतन और पेंशन दोनों का लाभ एक साथ लेते हुए 54 लाख रुपये से अधिक का भुगतान कर दिया गया। मामले को लेकर अब विश्वविद्यालय ने उन्हें नोटिस भेजा है, हालांकि वह रजिस्टर्ड पत्र वापस लौट आया है।

क्या है मामला
प्रबंधन के अनुसार, प्रो. अशोक सिंह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से सेवानिवृत्त होने के करीब दो वर्ष बाद 3 अगस्त 2021 को संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त किए गए थे। नियमों के मुताबिक, सेवानिवृत्त अधिकारी को या तो वेतन या पेंशन में से किसी एक का लाभ लेने की अनुमति होती है, लेकिन अशोक सिंह ने BHU से पेंशन और विश्वविद्यालय से कुलपति के रूप में वेतन दोनों प्राप्त किए।

वेतन में नहीं हुई पेंशन की कटौती
विश्वविद्यालय का कहना है कि यदि वे पेंशन ले रहे थे, तो कुलपति पद पर वेतन भुगतान के समय पेंशन की राशि की कटौती होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और वे लगातार दोहरा लाभ उठाते रहे। उनका मासिक वेतन लगभग ₹2.10 लाख था।

बीएचयू के जवाब से खुलासा
वर्तमान कुलसचिव प्रो. एसपी त्रिपाठी ने कामकाज में पारदर्शिता लाने की पहल की, जिसके तहत BHU को पत्र लिखकर स्थिति स्पष्ट करने को कहा गया। BHU से मिले जवाब में पुष्टि हुई कि प्रो. अशोक सिंह वहां से पेंशन ले रहे हैं। इसके बाद विश्वविद्यालय प्रबंधन ने अतिरिक्त भुगतान की गणना की, जो ₹54 लाख से अधिक निकली।

नोटिस भेजा, लेकिन लौटा
मार्च 2025 में मामला सामने आने के बाद विश्वविद्यालय ने उन्हें राशि वापसी के लिए पत्र भेजा, लेकिन रजिस्टर्ड पत्र स्वीकार नहीं किया गया और वह लौट आया। अब प्रबंधन फिर से नोटिस भेजने की तैयारी में है। यदि रकम वापस नहीं की गई तो मामला पुलिस को सौंपा जा सकता है।

पूर्व कुलपति का बयान
इस पूरे प्रकरण पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रो. अशोक सिंह ने आरोपों को निराधार बताया और कहा,

“ये कोई मुद्दा ही नहीं है। मेरे चले आने के बाद यह सिर्फ बदनाम करने का षड्यंत्र है। इसकी वास्तविकता कुछ और है।”

धारा 52 के तहत हटाए गए थे कुलपति
उल्लेखनीय है कि प्रो. अशोक सिंह को छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद धारा 52 के तहत पद से हटाया गया था। उन्हें कांग्रेस शासनकाल में कुलपति नियुक्त किया गया था। राज्य में भाजपा सरकार आने के बाद उनके कार्यशैली को अनुचित मानते हुए उन्हें पद से हटाया गया।

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