बस्तर दशहरा 2025: फूल रथ की परिक्रमा शुरू, राजा-रानी को रथ पर बैठाने को लेकर विवाद जारी

जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के तीसरे दिन बुधवार को परंपरानुसार मां दंतेश्वरी के फूल रथ की परिक्रमा शुरू की गई। चार पहियों वाले रथ पर मां का छत्र सजाया गया, और प्रधान पुजारी रथ पर सवार होकर गोलबाजार के बीच मावली माता की परिक्रमा करते नजर आए। इस दौरान ढोल-नगाड़ों और गाजे-बाजे के साथ छत्र का स्वागत किया गया, जबकि पुलिस जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर देते हुए सलामी दी।

हालांकि, रथ की परिक्रमा से पहले बड़ा विवाद खड़ा हो गया। 60 साल बाद राजा-रानी को रथ पर बैठाने की मांग को लेकर बस्तर संभाग के विभिन्न गांवों से आए पटेल समुदाय ने अड़ताल की। उनका कहना था कि जब तक राजा-रानी रथ पर नहीं बैठेंगे, वे रथ खींचने के लिए तैयार नहीं हैं।

रथ घंटों तक खड़ा रहा। बस्तर कलेक्टर हरिस एस और बस्तर एसपी सलभ सिन्हा की समझाइश के बावजूद पटेल समुदाय अपने पक्ष पर अड़ा रहा। अंततः बस्तर राज परिवार के सदस्य कमल चंद भंजदेव की समझाइश के बाद, राजा के पुजारी ने रथ पर मां दंतेश्वरी का छत्र रखकर परिक्रमा पूरी की।

गौरतलब है कि यह परंपरा रियासत काल में थी, जब राजा-रानी रथ पर सवार होते थे। 1965 के बाद यह रस्म बंद हो गई थी। इस साल कमलचंद भंजदेव की शादी के बाद राजा को रथ पर बैठाने की मांग उठी, लेकिन प्रशासन ने अनुमति नहीं दी। देर रात रथ सिरहासार चौक से निकला और गोलबाजार, मिताली चौक होते हुए मां दंतेश्वरी मंदिर तक पहुंचा। यह रस्म आगामी तीन दिनों तक इसी तरह निभाई जाएगी।

माना जाता है कि बस्तर दशहरा की रथ परिक्रमा की शुरुआत 1410 ईसवी में महाराजा पुरुषोत्तम देव ने की थी। यह सात सौ साल पुरानी परंपरा दशहरे का मुख्य आकर्षण रही है। हालांकि, पटेल समाज ने संकेत दिए हैं कि 2 अक्टूबर को होने वाली विजय रथ परिक्रमा में वे राजा को रथपति की उपाधि दिलाने की मांग फिर से उठाएंगे। ऐसे में दशहरे के इस बड़े आयोजन में विवाद एक बार फिर उभर सकता है।

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