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बस्तर दशहरा 2025: 60 साल बाद फिर जीवित हो सकती है टूटी परंपरा, राज परिवार लेगा माता दंतेश्वरी का छत्र

जगदलपुर। बस्तर दशहरा, जो अपनी अनूठी परंपराओं और भव्यता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, इस साल और भी खास हो सकता है। करीब 60 साल से टूटी हुई एक पुरानी परंपरा को फिर से जीवित करने की कोशिशें तेज हो गई हैं। यदि सब कुछ ठीक रहा तो इस बार बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव और उनकी पत्नी दशहरे के दौरान माता दंतेश्वरी का छत्र लेकर रथ पर विराजमान होंगे।

परंपरा का महत्व

बस्तर दशहरा केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि आस्था, संस्कृति और परंपरा का अनूठा संगम है। हर साल यहां मां दंतेश्वरी का छत्र रथ पर विराजित कर हजारों श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं। रियासत काल में इसकी भव्यता और बढ़ जाती थी, जब राजा-रानी स्वयं रथ पर बैठकर छत्र लेकर चलते थे।

कब टूटी थी परंपरा?

यह परंपरा आखिरी बार 1961 से 1965 के बीच निभाई गई थी। उस समय राजा प्रवीणचंद भंजदेव ने रथ पर छत्र धारण किया था। उनके अविवाहित रहने के कारण आगे यह परंपरा टूट गई। लेकिन हाल ही में बस्तर रियासत प्रमुख कमलचंद भंजदेव का विवाह हुआ है, जिससे इस परंपरा को पुनर्जीवित करने की मांग उठी है।

जनभावना और राजनीतिक पहल

स्थानीय लोग और दशहरा समिति इस परंपरा को दोबारा शुरू करने के पक्ष में हैं। बस्तर सांसद महेश कश्यप ने भी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कानूनी अड़चनों को दूर करने की अपील की है। उनका कहना है कि यदि यह परंपरा लौटती है तो बस्तर दशहरा की ऐतिहासिकता और भव्यता कई गुना बढ़ जाएगी।

राज परिवार और जनता की उम्मीदें

कमलचंद भंजदेव का कहना है— “यह परंपरा बस्तर की अस्मिता और आस्था से जुड़ी है। इसे पुनर्जीवित करना हमारे लिए गौरव की बात होगी।” वहीं बस्तर वासी मानते हैं कि इससे आने वाली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति और परंपरा से गहराई से जुड़ने का अवसर मिलेगा।

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