Bhuto ka Mela : यहां लगती है भूतों की अदालत, बड़े से बड़ा शैतान कर लेता है जुर्म कबूल

Bhuto ka Mela : मध्य प्रदेश के खंडवा में होली से रंगपंचमी तक एक अनोखा मेला लगता है, जिसे “भूतों का मेला” कहा जाता है। इस मेले में दूर-दूर से लोग आते हैं, जिनका मानना है कि सैलानी बाबा की दरगाह पर भूत-प्रेत कांपते हैं और अपनी गलतियों को कबूल करते हैं। लोगों का कहना है कि बाबा भूतों को सजा भी देते हैं।

यह दरगाह साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक भी है। यहां हिन्दू कैलेंडर के अनुसार होली से रंग पंचमी तक मेला लगता है। लोगों का मानना है कि इन पांच दिनों में बाबा को विशेष चादर पेश की जाती है। जिन लोगों को यहां से फायदा होता है, वे हर साल हाजिरी लगाने आते हैं।

यह कहना गलत होगा कि हम किसी अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं। लेकिन यह बताना भी जरूरी है कि हमारा समाज आज भी रूढ़िवादी सोच से बाहर नहीं निकल पा रहा है। 21वीं सदी में भी हमारे देश में तंत्र-मंत्र और भूत-प्रेतों की एक अलग ही दुनिया है, जहां लोग आज भी आस्था और श्रद्धा से सिर झुकाते हैं।

खंडवा से 26 किलोमीटर दूर जावर गांव के पास सैलानी बाबा की दरगाह है। यहां होली से लेकर रंगपंचमी तक भूतों की अदालत लगती है। दरगाह के परिसर में आते ही पीड़ितों की अजीब हरकत और आवाजों से अलग ही मंजर दिखाई देता है। बाहरी बाधा से परेशान लोग दूर-दूर से यहां आते हैं।

बाबा की इस अदालत में बाहरी बाधाओं और भूत प्रेत से पीड़ित लोगों की हाजिरी लगती है। जहां बुरी आत्माओं को सैलानी बाबा स्वयं सजा देकर शरीर से बाहर निकालते हैं। जिन्हें फायदा होता है, वे लोग भी यहां हाजिरी लगाने आते हैं।

सैलानी बाबा की यह दरगाह करीब सौ साल पुरानी है। जो बुलढाना के फकीर मकदूम शाह सैलानी की है। कहा जाता है कि जिन शरीरों पर बुरी आत्माओं ने अपना कब्जा जमा लिया हो, जिनके आगे हर तंत्र-मंत्र फेल हो गया हो, ऐसे ही बुरी नजर और बाहरी आत्माओं से पीड़ित लोगों की पेशी होती है।

यहां आने के बाद बड़े से बड़ा शैतान भी बाबा के सामने सरेंडर हो जाता है। बाबा इन आत्माओं को शरीर से अलग कर लोगों को मुक्ति दिलाते हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने डॉक्टरी इलाज में भी कोई कसर नहीं छोड़ी, आखिकार फायदा बाबा के यहां से ही मिला।

1939 में स्थापित बाबा की इस दरगाह में होली से लेकर रंगपंचमी तक देश भर से हजारों लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो जाता है। देशभर से आए लोग यहां तम्बू बनाकर कई दिनों तक रहते हैं। मान्यता है कि पांच गुरुवार नियमित यहां आने से पीड़ितों को फायदा होता है। कुछ लोग अपने अच्छा होने की मन्नत लेकर भी आते हैं और बली के रूप में मुर्गे और बकरे को भी साथ लाते हैं और बाबा के नाम पर यही छोड़ जाते हैं।

विज्ञान के इस युग में एक ओर हम चांद पर पहुंच गए हैं, तो वहीं दूसरी तरफ आज भी लोग भूत प्रेत बाधा जैसी चीजों पर विश्वास करते हैं। भूत-प्रेत और चुड़ैल जैसी चीजों को विज्ञान नहीं मानता है। अब इसे आस्था कहे या अंधविश्वास, लेकिन लोगों की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं, जिन्हें लोग सदियों से निभाते चले आ रहे हैं।

यह मेला आस्था का प्रतीक है या अंधविश्वास, यह फैसला आपको खुद करना होगा।

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