जमीन रजिस्ट्री के बाद नामांतरण तो हो रहा, लेकिन नई ऋण पुस्तिका के लिए खरीदार बेहाल – अफसरशाही की चाल में उलझे किसान और आम लोग

रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने आम लोगों की सुविधा के लिए जमीन रजिस्ट्री के बाद स्वतः नामांतरण (ऑटो म्यूटेशन) की सुविधा चालू की थी, ताकि लोगों को पटवारी, तहसीलदार और एसडीएम कार्यालयों के चक्कर न काटने पड़ें। लेकिन जमीन खरीदने वालों की परेशानी कम होने के बजाय और ज्यादा बढ़ गई है। अब नई ऋण पुस्तिका (लोन बुक) के लिए लोगों को पहले पटवारी और फिर तहसीलदार के दरबार में हाजिरी लगानी पड़ रही है।

सरकार की मंशा भले ही लोगों को राहत देने की हो, लेकिन अफसरशाही अब भी पुरानी चालों पर ही चल रही है—”तू डाल-डाल, मैं पात-पात” वाली शैली में। इससे जमीन खरीदने वाले हजारों लोग परेशान हैं और भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंसे हुए हैं।

नई व्यवस्था, लेकिन पुराना सिस्टम

सरकार ने जून 2025 में एक आदेश जारी कर जमीन की रजिस्ट्री के साथ ही ऑटोमेटिक नामांतरण की व्यवस्था लागू की थी। इसका मतलब था कि अब रजिस्ट्री के साथ ही जमीन नए मालिक के नाम पर चढ़ जाएगी, और नामांतरण के लिए अलग से आवेदन देने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

लेकिन जैसे ही खरीदार ऋण पुस्तिका के लिए पहुंचते हैं, पूरा सिस्टम पुराने ढर्रे पर लौट आता है। पटवारी उन्हें तहसील कार्यालय भेजते हैं और तहसीलदार यह कहकर आवेदन मांगते हैं कि “सरकार की स्पष्ट गाइडलाइन नहीं आई है।” नतीजा ये कि लोगों को फिर वही चक्कर, वही लंबी लाइनें और वही “चढ़ावे की परंपरा” का सामना करना पड़ रहा है।

रायपुर में 3 हजार से ज्यादा लोग परेशान, प्रदेश में आंकड़ा 50 हजार के पार

जानकारी के मुताबिक अकेले रायपुर जिले में ही 3 हजार से अधिक मामले ऐसे हैं, जहां रजिस्ट्री होने के बावजूद लोगों को ऋण पुस्तिका नहीं मिली है। पूरे छत्तीसगढ़ की बात करें तो यह आंकड़ा 50 हजार से अधिक बताया जा रहा है।

खरीदारों का कहना है कि उन्हें आवेदन देने से आपत्ति नहीं है, लेकिन एक बार आवेदन देने के बाद बार-बार पेशी पर बुलाना, और काम के बदले रकम मांगना सबसे बड़ी समस्या बन गई है।

मारना कम, घसीटना ज्यादा… यही हो रहा है तहसील कार्यालयों में

लोगों की शिकायत है कि तहसीलदार कार्यालय में आवेदन के बाद काम कराने के लिए पैसा ऊपर से नीचे तक हर किसी को देना पड़ता है, फिर भी समय पर ऋण पुस्तिका नहीं मिलती।

एक खरीदार ने बताया—

“रकम देने की बात नहीं है, दिक्कत तो ये है कि देने के बाद भी हर बार नए बहाने बनाकर पेशी पर बुला लिया जाता है। बाबू कहता है साहब बाहर हैं, साहब कहते हैं फाइल नहीं आई। और फिर से एक चक्कर और।”

किसानों की सबसे ज्यादा मुश्किलें

खासतौर पर वे किसान जो खेती के लिए जमीन खरीदते हैं, उनके लिए यह परेशानी और बड़ी है।
ऋण पुस्तिका न मिलने से न वे सोसायटी में पंजीयन करवा पा रहे हैं, न ही खाद-बीज मिल पा रहा है। बैंक से लोन लेना, राजस्व रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराना—हर चीज अटक गई है।

पटवारी और तहसीलदार एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर पल्ला झाड़ लेते हैं, जिससे किसान यह समझ ही नहीं पा रहे कि वे अपनी शिकायत लेकर जाएं तो जाएं कहां?

ऑनलाइन ऋण पुस्तिका का दावा झूठा साबित हो रहा है

राजस्व विभाग के अफसर और मंत्री मान रहे हैं कि अब ऋण पुस्तिका ऑनलाइन बन रही है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि लोगों को ऑनलाइन की बजाय ऑफलाइन रिश्वत व्यवस्था में ही फंसना पड़ रहा है।

एक खरीदार ने बताया कि ऑनलाइन आवेदन के बाद भी उन्हें तहसील कार्यालय में खुद हाजिर होकर फाइलें चेक करवानी पड़ रही हैं। हर बार कोई न कोई दस्तावेज अधूरा बताकर वापस कर दिया जाता है।

क्या सरकार को नहीं है इसकी खबर?

ऐसा प्रतीत होता है कि इस पूरी अफसरशाही की चाल से न तो मंत्री वाकिफ हैं और न ही शीर्ष अधिकारी। ऊपर बैठा तंत्र मान रहा है कि “ऑनलाइन सिस्टम से काम आसान हो गया है”, जबकि जमीनी हकीकत यह है कि लोग पहले से ज्यादा परेशान हो रहे हैं।

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