छत्तीसगढ़ के मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी जिले की जिला पंचायत अध्यक्ष नम्रता सिंह जैन एक बड़े विवाद में घिर गई हैं। उन पर फर्जी अनुसूचित जनजाति (ST) प्रमाण पत्र के आधार पर आरक्षित सीट से चुनाव जीतने का गंभीर आरोप लगा है। इस खुलासे ने न केवल जिला पंचायत की राजनीति में भूचाल ला दिया है, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
फर्जी प्रमाण पत्र का आरोप, जांच की मांग
शिकायतकर्ता का आरोप है कि नम्रता सिंह जैन ने जिला पंचायत चुनाव 2025 में जो ST प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था, वह फर्जी है। यह प्रमाण पत्र तत्कालीन संयुक्त कलेक्टर चन्द्रिका प्रसाद बघेल द्वारा जारी किया गया था, जो आरोप के मुताबिक बिना किसी उचित जांच और वैधानिक प्रक्रिया के जारी किया गया। शिकायतकर्ता ने इस मामले की शिकायत कलेक्टर से की है और 15 दिनों के भीतर निष्पक्ष जांच की मांग की है।
बनी जांच समिति, लेकिन कार्रवाई में देरी
मामले की गंभीरता को देखते हुए एसडीएम, मोहला ने जांच समिति का गठन किया है, लेकिन शिकायतकर्ता ने जांच की धीमी रफ्तार को लेकर नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि अगर प्रमाण पत्र फर्जी पाया जाता है, तो न केवल उसे रद्द किया जाना चाहिए, बल्कि नम्रता सिंह जैन को पंचायत राज अधिनियम की धारा 19 और 36 के तहत अयोग्य घोषित किया जाए।
कौन हैं नम्रता सिंह जैन?
नम्रता सिंह जैन, पति सचिन जैन, वर्तमान में मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी की जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। उनके पिता स्वर्गीय नारायण सिंह ओडिशा मूल के 1977 बैच के आईएएस अधिकारी रहे हैं, जिन्होंने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में प्रशासनिक सेवाएं दी थीं। नम्रता सिंह ने 2025 के पंचायत चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट से जीत दर्ज की थी।
शिकायतकर्ता की प्रमुख मांगें
- ST प्रमाण पत्र की वैधता, स्थायी निवास और सामाजिक स्थिति की 15 दिन में जांच हो।
- प्रमाण पत्र फर्जी पाए जाने पर उसे तत्काल रद्द किया जाए।
- पंचायत अध्यक्ष पद से अयोग्यता की घोषणा की जाए।
- BNS, SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कानूनी कार्रवाई की जाए।
- RTI अधिनियम की धारा 4 के तहत सभी दस्तावेज सार्वजनिक किए जाएं।
संवैधानिक और कानूनी पहलू
यह मामला संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 342 (अनुसूचित जनजातियों की पहचान) और अनुच्छेद 243D (पंचायतों में आरक्षण) का उल्लंघन माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के कई ऐतिहासिक फैसलों—जैसे माधुरी पाटिल बनाम अतिरिक्त आयुक्त (1994) और महाराष्ट्र राज्य बनाम मिलिंद (2001)—में साफ कहा गया है कि फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर प्राप्त पद और लाभ रद्द किए जा सकते हैं।
सवालों के घेरे में प्रमाण पत्र
शिकायतकर्ता का दावा है कि नम्रता सिंह जैन या उनके परिवार का छत्तीसगढ़ में 1950 से पहले कोई स्थायी निवास, ग्राम सभा प्रस्ताव, राजस्व रिकॉर्ड या जमीन का दस्तावेज नहीं है, जो ST प्रमाण पत्र के लिए अनिवार्य होता है। उनके पिता ओडिशा के निवासी थे, और संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत किसी एक राज्य की जनजातीय पहचान दूसरे राज्य में मान्य नहीं होती।
फर्जी प्रमाण पत्र का ट्रेंड
छत्तीसगढ़ में 2000 से 2020 के बीच 758 फर्जी ST प्रमाण पत्र के मामलों में से 267 प्रमाण पत्रों को फर्जी पाया गया है। यह आंकड़ा दिखाता है कि इस तरह के फर्जीवाड़े की जड़ें कितनी गहरी हैं और इस पर सख्त कार्रवाई की कितनी आवश्यकता है।