छत्तीसगढ़ के तहसीलदारों की ‘VIP हड़ताल’ – सिर्फ ऑफिस टाइम में प्रदर्शन

रायपुर। छत्तीसगढ़ के तहसीलदार और नायब तहसीलदार अपनी 17 सूत्रीय मांगों को लेकर प्रदेशभर में अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं, लेकिन खास बात यह है कि यह हड़ताल केवल सोमवार से शुक्रवार कार्यदिवसों में हो रही है। शनिवार और रविवार को उन्होंने खुद ही हड़ताल की छुट्टी घोषित कर दी।

धरना स्थल पर सन्नाटा
नवा रायपुर के तूता धरना स्थल पर जहां शुक्रवार को 550 से अधिक तहसीलदार और नायब तहसीलदार एकजुट होकर प्रदर्शन कर रहे थे, वहीं शनिवार को मंच पूरी तरह खाली मिला। जब तहसीलदारों से संपर्क किया गया तो जवाब मिला, “आज तो हड़ताल की भी छुट्टी है।”

जनता की नाराजगी
धरना स्थल पहुंचे एक पीड़ित ने नाराजगी जताते हुए कहा कि इसका सीधा अर्थ है कि जनता परेशान होती रहे। उन्होंने कहा कि यदि तहसीलदारों को सच में जनता की चिंता है तो वे शनिवार-रविवार को लंबित आय-जाति प्रमाण पत्र जैसे काम निपटाएं या फिर अपनी मांगें पूरी होने तक बिना रुके धरना दें।

संघ ने दी सफाई
इस पर तहसीलदार संघ ने कहा कि शनिवार और रविवार को शासकीय कार्य न होने के कारण हड़ताल का कोई प्रशासनिक प्रभाव नहीं पड़ता, इसलिए इन दिनों को हड़ताल से बाहर रखा गया है। संघ ने इसके चार प्रमुख कारण बताए:

  1. शासकीय कर्तव्य से पृथक दिवस
    शनिवार और रविवार को प्रशासनिक कामकाज बंद रहते हैं, इसलिए इन दिनों हड़ताल का प्रभाव शासन तक नहीं पहुंचता।
  2. लक्ष्य प्रभाविता पर रणनीति
    संघ का कहना है कि आंदोलन का मकसद केवल विरोध नहीं, बल्कि शासन को कार्यदिवसों में कामकाज बाधित होने का अनुभव कराना है।
  3. लोकहित की संवेदनशीलता
    गैर-कार्यदिवसों में हड़ताल करने से आम नागरिकों को अनावश्यक परेशानी होती, जिसे संघ टालना चाहता है।
  4. नैतिक उच्चता और अनुशासन
    संघ ने कहा कि यह फैसला अनुशासन और समाधानोन्मुखी संवाद की दिशा में उनकी प्रतिबद्धता दर्शाता है।

मुख्य मांगें
तहसीलदार संघ का कहना है कि वे अब ‘संसाधन नहीं तो काम नहीं’ के सिद्धांत पर चलेंगे। उनकी प्रमुख मांगें हैं—

  • हर तहसील में पर्याप्त स्टाफ की नियुक्ति (कंप्यूटर ऑपरेटर, चपरासी, पटवारी, राजस्व निरीक्षक आदि)
  • डिप्टी कलेक्टर पद पर प्रमोशन प्रक्रिया में पारदर्शिता
  • सीधी भर्ती और प्रमोशन का 50:50 अनुपात बहाल किया जाए।

संघ के प्रदेश अध्यक्ष कृष्ण कुमार लहरे ने कहा कि संसाधनों और सुविधाओं की भारी कमी के कारण वे यह लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं।

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