देवभोग। जिला सहकारी बैंक के देवभोग शाखा के अधीन आने वाली दीवानमुड़ा सहकारी समिति में सामने आए बड़े घोटाले में केवल कंप्यूटर ऑपरेटर पर ही कार्रवाई की गई है। सहायक पंजीयक सहकारिता के निर्देश पर प्राधिकृत अधिकारी क्षीरसागर बीसी ने कंप्यूटर ऑपरेटर ऋतिक निधि को बर्खास्त कर दिया है। आरोप है कि समिति के किसान सदस्य खेमा पांडे के खाते से 7.91 लाख रुपए का फर्जी आहरण किया गया था।
किसान के खाते से निकले लाखों
खेमा पांडे ने जनवरी में 255.20 क्विंटल धान बेचा था, जिसके एवज में 7.91 लाख रुपए उनके देवभोग बैंक खाते में जमा हुए। लेकिन अप्रैल में जब किसान रुपए निकालने पहुंचे, तो उन्हें पता चला कि यह राशि 14 से 28 फरवरी के बीच नियम विरुद्ध गोहरापदर शाखा से निकाल ली गई है। किसान ने अप्रैल में कलेक्टर जन दर्शन में शिकायत भी की थी, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। मामला तब गर्माया जब 31 मई को इसकी खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई।
इसके बाद सहकारिता विभाग और जिला सहकारी बैंक ने जांच शुरू की। नतीजतन, गोहरापदर शाखा के सहायक लेखापाल दीपराज मसीह ने जून में 5.91 लाख रुपए और तत्कालीन मैनेजर न्यानसिंह ठाकुर ने 2 लाख रुपए किसान के खाते में वापस जमा कराए। बाद में किसान ने यह रकम निकाल ली।
धान खरीदी में भी गड़बड़ी
मामला केवल बोगस आहरण का ही नहीं बल्कि धान खरीदी से भी जुड़ा हुआ है। जांच में पाया गया कि दीवानमुड़ा खरीदी केंद्र से 2880 बोरा धान, यानी करीब 32 लाख रुपए का धान गायब है। अंतिम भौतिक सत्यापन रिपोर्ट में यह शॉर्टेज दर्ज है, लेकिन इस बड़े मुद्दे को जांच में शामिल ही नहीं किया गया।
अफसरों पर कार्रवाई से परहेज़
कंप्यूटर ऑपरेटर ने जांच कमेटी के सामने फर्जी आहरण की बात कबूल कर ली थी, लेकिन तत्कालीन बैंक मैनेजर और लेखा सहायक जैसे जिम्मेदार अफसरों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। सहकारी बैंक की सीईओ अपेक्षा व्यास का कहना है कि जिला स्तर पर नोडल और सहायक पंजीयक मामले की जांच कर रहे हैं, रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्रवाई होगी। वहीं नोडल अधिकारी शिवेश मिश्रा ने कहा कि किसान को रकम लौटा दी गई है और उच्च कार्यालय से निर्देश मिलने पर ही आगे कदम उठाए जाएंगे।
जांच के अधूरे बिंदु
जांच में कई अहम बिंदुओं को नजरअंदाज कर दिया गया है।
- किसान के खाते से फर्जी आहरण के लिए जिम्मेदार मैनेजर और लेखा सहायक के खिलाफ कार्रवाई नहीं।
- दर्जनों किसानों के नाम पर बोगस खरीदी-बिक्री के जरिए 1 करोड़ से ज्यादा के लेनदेन का खुलासा दबा दिया गया।
- दीवानमुड़ा समिति कर्मचारियों का 11 महीने से रुका वेतन और खरीदी-रखरखाव के लाखों रुपए खर्च रोकने की वजह स्पष्ट नहीं की गई।
- धान खरीदी में 2880 बोरा गायब होने के बावजूद यह सवाल अनसुलझा रहा कि रकम और धान की भरपाई आखिर कैसे की गई।
केवल ऑपरेटर पर गिरी गाज
इस पूरे मामले में अब तक केवल कंप्यूटर ऑपरेटर ऋतिक निधि पर गाज गिरी है। जबकि धान खरीदी और बोगस आहरण में अन्य कर्मचारियों और अफसरों की भूमिका साफ दिखने के बावजूद कार्रवाई से उन्हें बचा लिया गया है। किसान खेमा पांडे को उसकी रकम मिल चुकी है, लेकिन सहकारी समिति और बैंकिंग सिस्टम की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।