डंगाही होली : रंग पंचमी पर कुंवारी कन्याएं मारती हैं छड़ियां.. छू हो जाती है सारी बीमारियां

Dangahi Holi : रंग पंचमी के अवसर पर, पंतोरा गांव, जो जांजगीर-चांपा जिले के मुख्यालय से 40-45 किलोमीटर दूर स्थित है, एक अनोखी लट्ठमार होली का आयोजन करता है। यह उत्सव, जिसे डंगाही होली के नाम से जाना जाता है, बरसाने की लट्ठमार होली की तर्ज पर आयोजित किया जाता है और बरसों से चला आ रहा है।

इस दिन, पंतोरा गांव की कुंवारी कन्याएं मंदिर में अभिमंत्रित बांस की छड़ियां लेकर लोगों पर बरसाती हैं। ग्रामीणों का मानना ​​है कि इन छड़ियों से मार खाने से बीमारियां दूर होती हैं। इस त्यौहार का पंतोरा में विशेष महत्व है, और लोग इसकी आस्था और महत्व का सम्मान करते हैं।

डंगाही होली की तैयारी

बलोदा ब्लॉक के पंतोरा गांव में स्थित मां भवानी मंदिर परिसर में रंग पंचमी के दिन हर साल पंतोरा के ग्रामीण जुटते हैं। ग्रामीण लाल बहादुर सिंह के अनुसार, यहां लट्ठमार होली की बरसों पुरानी परंपरा है। रंग पंचमी से एक दिन पहले शाम को, ग्रामीण कोरबा जिले के मड़वारानी के जंगल से बांस की छड़ियां लाते हैं। केवल एक ही कुल्हाड़ी से कटी हुई छड़ी का उपयोग किया जाता है, और उसी छड़ी की पूजा की जाती है।

कन्याओं की भूमिका:

इस उत्सव में कन्याओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रंग पंचमी के दिन, पूजा के बाद, बैगा (पंडित) द्वारा कन्याओं को भवानी मां में चढ़ी हुई छड़ी दी जाती है। कन्याएं मंदिर के बाहर खड़े बैठे सभी बच्चे और बड़ों को छड़ी से मारती हैं। रास्ते में चलने वाले राहगीर भी छड़ियों से मार खाने के लिए रुकते हैं। इसका कोई विरोध नहीं होता है और न ही कोई बुरा मानता है।

डंगाही होली का उत्सव

रंग पंचमी के दिन, कुंवारी कन्याएं रंगीन वेशभूषा में सजती हैं और मां भवानी मंदिर में पूजा करती हैं। पूजा के बाद, वे बांस की छड़ियां लेकर गांव की गलियों में निकलती हैं। पुरुष ढोल-नगाड़े बजाते हुए उनके साथ चलते हैं।

जैसे ही कन्याएं गांव में घूमती हैं, पुरुष उन पर रंग डालते हैं और छड़ी खाने के लिए ललचाते हैं। कन्याएं भी पुरुषों पर छड़ियां बरसाती हैं, और यह खेल हंसी-मजाक के बीच चलता है।

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