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4 साल से मर्च्यूरी में पड़ी लाशें, परिजनों का इंतजार करते हुए कंकाल में तब्दील

Hospital

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Dr Bhimrao Ambedkar Memorial Hospital : मरने के बाद भी सुकून नहीं, यह बात 62 साल के जब्बार सिंह, 31 साल के पंकज और 43 वर्षीय दुकलहीन बाई के लिए सच साबित हुई है। इन तीनों की मौत कोरोना काल के पहले दौर में हुई थी, लेकिन लापरवाही या मुर्दा सिस्टम की वजह से बीते चार सालों से अंबेडकर अस्पताल के मर्च्यूरी में पड़े-पड़े इनकी लाशें कंकाल में तब्दील हो गई हैं।

राजधानी के अंबेडकर अस्पताल की मर्च्यूरी में तीन लाशें ऐसी पड़ी हैं, जिन्हें बीते चार सालों में किसी ने भी हाथ नहीं लगाया है। इन लाशों का कोई वारिशान नहीं मिला, जो कोरोना प्रोटोकाल के तहत अंतिम संस्कार के लिए अनुमति प्रदान करता। लिहाजा, समय के साथ पीपीई किट में पड़े-पड़े तीनों लाशें आज कंकाल में तब्दील हो चुकी हैं। इन तीन लाशों में से दो लाश निजी अस्पताल से भेजे गए थे, वहीं एक लाश अंबेडकर अस्पताल में भर्ती मरीज की ही है, जिसकी इलाज के दौरान मौत हो गई थी।

यह घटना अस्पताल प्रशासन की लापरवाही और मृतकों के परिजनों की असंवेदनशीलता को उजागर करती है। अस्पताल प्रशासन ने इतने समय तक इन लाशों का अंतिम संस्कार क्यों नहीं करवाया? क्या यह लापरवाही नहीं है? वहीं, मृतकों के परिजनों ने भी चार साल तक इन लाशों की सुध क्यों नहीं ली? क्या यह असंवेदनशीलता नहीं है?

यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि मरने के बाद भी इंसान को सुकून नहीं मिलता है।

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