100 साल पुराना रेलवे स्कूल बंद होने की कगार पर, पालकों ने किया कड़ा विरोध

डोंगरगढ़। स्वतंत्रता दिवस के दिन जहां देशभर में आज़ादी और अधिकारों का जश्न मनाया जा रहा था, वहीं डोंगरगढ़ के लोगों को अपने बच्चों की शिक्षा बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। शहर के बीचों-बीच स्थित रेलवे उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जिसने 1920 से अब तक अनगिनत पीढ़ियों को शिक्षा दी, अब बंद होने के आदेश के चलते विवादों में घिर गया है।

अचानक सत्र के बीच स्कूल बंद करने का आदेश

रेलवे प्रशासन ने मौजूदा सत्र के बीच स्कूल बंद करने का फरमान जारी कर दिया। वजह बताई गई—भवन जर्जर है और बच्चों की सुरक्षा खतरे में है। लेकिन इसी जर्जर भवन में रेलवे मंडल स्तर का प्रशिक्षण संस्थान शुरू करने की तैयारी ने पालकों को हैरान कर दिया।

यह स्कूल केवल एक इमारत नहीं, बल्कि सदी भर के संघर्ष, सपनों और सफलताओं का गवाह रहा है। यहां पढ़े अनेक छात्र आज देश-विदेश में नाम कमा रहे हैं। मौजूदा सत्र में सीबीएसई पैटर्न पर पढ़ रहे बच्चों को अब सीजी बोर्ड पैटर्न के स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में भेजने की तैयारी है। सत्र शुरू हुए दो महीने हो चुके हैं—फीस, किताबें और यूनिफॉर्म पर खर्च हो चुका है—ऐसे में अचानक पैटर्न बदलना बच्चों के भविष्य के लिए झटका माना जा रहा है।

पालकों का विरोध और सामूहिक निर्णय

रेलवे अधिकारियों ने स्कूल प्राचार्य को निर्देश दिया कि तुरंत पालकों की बैठक बुलाकर स्थानांतरण प्रमाण पत्र (टीसी) लेने के लिए तैयार किया जाए। इसके लिए जिला कलेक्टर की अनुमति भी ले ली गई। लेकिन बैठक में मौजूद पालकों ने सांसद प्रतिनिधि तरुण हथेल की मौजूदगी में सर्वसम्मति से फैसला लिया कि किसी भी कीमत पर बच्चों का ट्रांसफर मंज़ूर नहीं किया जाएगा।

पालकों का सवाल है—अगर भवन सच में खतरनाक था तो सत्र शुरू होने से पहले निर्णय क्यों नहीं लिया गया? और यदि बच्चों के लिए असुरक्षित है तो अफसरों के प्रशिक्षण के लिए सुरक्षित कैसे है?

गहरी शंका और असली वजह पर सवाल

कई लोगों का मानना है कि यह सिर्फ भवन बदलने का मामला नहीं, बल्कि रेलवे जमीन के उपयोग को बदलने और कर्मचारियों की सुविधाओं के नाम पर बच्चों को स्कूल से बेदखल करने की योजना है। यह विवाद अब केवल एक स्कूल तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह शिक्षा, प्रशासनिक जवाबदेही और नागरिक अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक बन गया है।

आज़ादी के दिन शिक्षा की जंग

जब पूरा देश स्वतंत्रता, अधिकार और समान अवसर की बात कर रहा है, उसी दिन डोंगरगढ़ के बच्चों के सपनों के दरवाज़े पर ताला लगाने की तैयारी विडंबना से कम नहीं। पालकों ने चेतावनी दी है कि अगर आदेश वापस नहीं लिया गया तो वे जन आंदोलन से लेकर कानूनी कार्रवाई तक का सहारा लेंगे।

रेलवे प्रशासन का कहना है कि बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि है, लेकिन उसी भवन में प्रशिक्षण संस्थान चलाने की योजना इस दलील को कमजोर करती है। सवाल वही है—क्या बच्चों की पढ़ाई और सुरक्षा, अफसरों की सुविधा और योजनाओं से छोटी हो गई है?

डोंगरगढ़ का यह संघर्ष आज़ादी के 79वें साल में यह याद दिलाता है कि असली आज़ादी तभी है जब हर बच्चे को पढ़ने का हक और समान अवसर मिले—वरना यह लड़ाई अभी जारी रहेगी।

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