आज भी नाग-नागिन करते हैं मणि की रक्षा! जानें हजारों वर्ष पुराने मरघट नाथ की कथा

सतना। मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित मरघटनाथ आश्रम अपने रहस्यों के लिए जाना जाता है। यह आश्रम सतना जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर कोठी कस्बे में स्थित है।

स्वयंभू शिवलिंग और मरघट

यहां भगवान शिव का स्वयंभू शिवलिंग विराजित है। यह आश्रम घने जंगल के बीच वीरानी जगह में स्थित है। हजारों मरघट और मसान के बीच शिवलिंग होने की वजह से ही इनका नाम मरघटनाथ पड़ा।

पारस मणि और नाग-नागिन

स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि आश्रम के आस-पास एक पारस मणि है जिसकी रक्षा नाग-नागिन करते हैं। कई लोगों ने दावा किया है कि उन्होंने नाग-नागिन को देखा है।

आश्रम के महंत

आश्रम के वर्तमान महंत रामेश्वरानंद सरस्वती ने बताया कि उनके आने से पहले यह जगह भूत-प्रेतों का वासस्थान थी। उन्होंने बताया कि नाग-नागिन ने ही उन्हें शिव मंदिर की रक्षा सौंपी थी।

भोज राजा और पारस मणि

महंत रामेश्वरानंद सरस्वती का कहना है कि प्राचीन काल में भोज नाम के एक राजा ने यहां घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पारस मणि प्रदान की थी। राजा ने शरीर त्यागने से पहले इस मणि को मंदिर के पास जमीन में गाड़ दिया था।

भगवान राम का विश्राम स्थल

महंत रामेश्वरानंद सरस्वती का यह भी कहना है कि भगवान राम चित्रकूट जाते समय यहां रुके थे। इसलिए, यह स्थान भगवान राम के विश्राम स्थल के रूप में भी जाना जाता है।

मरघटनाथ आश्रम अपनी रहस्यमय कहानियों और किंवदंतियों के लिए जाना जाता है। यह स्थान आस्था और भक्ति का केंद्र है, और यह लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

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