Bastar Dussehra: बस्तर, अपनी अनोखी और आकर्षक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध, दशहरा पर्व की शुरुआत एक विशेष रस्म के साथ करता है। बुधवार रात काछन देवी की अनुमति मिलने के बाद इस महापर्व का शुभारंभ हो गया है। इस रस्म को निभाने के लिए एक नाबालिग कुंवारी कन्या को कांटों से बने झूले पर लिटाया जाता है, जिसे “काछनगादी” कहा जाता है। मान्यता है कि इस प्रक्रिया के दौरान देवी स्वयं उस कन्या में अवतरित होकर पर्व की अनुमति देती हैं। यह परंपरा पिछले 700 वर्षों से चली आ रही है।
इस वर्ष 8 वर्षीय पीहू दास, अनुसूचित जाति के विशेष परिवार से आने वाली कन्या, ने काछन देवी के रूप में यह रस्म निभाई। उन्होंने कांटों के झूले पर लेटकर बस्तर राजपरिवार को दशहरा शुरू करने की अनुमति दी। इससे पहले पीहू की चचेरी बहन अनुराधा इस रस्म को निभा रही थीं।
बस्तर दशहरा 75 दिनों तक चलने वाला एक महापर्व है, जिसमें 12 से अधिक अद्भुत और अनोखी रस्में निभाई जाती हैं। इस पर्व के सफलतापूर्वक संपन्न होने के लिए काछन देवी की अनुमति आवश्यक मानी जाती है। पनका जाति की कुंवारी कन्या को इस रस्म के दौरान विशेष रूप से चुना जाता है, और पितृमोक्ष अमावस्या के दिन यह महत्वपूर्ण विधान संपन्न होता है।
हजारों लोग, जिनमें राजपरिवार और स्थानीय जनप्रतिनिधि शामिल होते हैं, इस रस्म को देखने के लिए काछन गुड़ी पहुँचते हैं और इस अनूठी परंपरा का साक्षी बनते हैं।
