संघ लोक सेवा आयोग यानि UPSC की सिविल सर्विसेज (CSE) देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है। इस परीक्षा के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में अभ्यर्थी आवेदन करते हैं, लेकिन चयन कुछ ही अभ्यर्थियों का हो पाता है। यही वजह है कि जो अभ्यर्थी इसके लिए चयनित होते हैं, वे अन्य के लिए मिसाल बन जाते हैं।
यूपीएससी की सिविल सर्विसेज में एक समय यानि कि सीसैट लागू होने से पहले हिंदी पट्टी के युवाओं का सबसे अधिक चयन होता था। आलम यह था कि इलाहाबाद विवि, बीएचयू सहित अन्य यूनिवर्सिटीज के दर्जनों अभ्यर्थी IAS बन जाते थे। लेकिन सीसैट लागू होने से सिविल सेवा में अंग्रेजी माध्यम के बच्चों का बोलबाला है।वहीं, सीसेट लागू होने के कारण हिंदी पट्टी के युवा में इसमें पिछड़ गए। यही वजह है कि बीते कुछ वर्षों से सिलेबस को हिंदी पट्टी के युवाओं को ध्यान में रखकर तैयार किए जाने की बात कही जा रही है।
लेकिन अब हिंदी माध्यम और ग्रामीण परिवेश के छात्रों के लिए खुशखबरी आई है। दरअसल, संसदीय समिति ने यूपीएससी परीक्षा प्रणाली में सुधार के लिए एक कमेटी के गठन की सिफारिश की है। ये कमेटी इस बात का अध्ययन करेगी कि क्या वर्तमान परीक्षा प्रणाली अंग्रेजी माध्यम के शहरी अभ्यर्थियों और गैर-अंग्रेजी माध्यम से शिक्षित ग्रामीण अभ्यर्थियों को समान अवसर प्रदान करती है?
साथ ही पैनल ने यूपीएससी परीक्षाओं को लेकर प्रक्रिया की लंबी अवधि के बारे में चिंता जताई, जिसमें परीक्षा के नोटिफिकेशन से रिजल्ट तक करीब 15 महीने का लंबा वक्त लग जाता है। पैनल का मानना है कि अभ्यर्थियों के जरूरी सालों को बर्बाद करने और उनकी शारीरिक और मानसिक काबिलियत को प्रभावित करने से बचने के लिए भर्ती परीक्षाओं को आदर्श रूप से 6 महीने के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।