Gariyaband : धमतरी जिले के ढाबों में 1000 रुपए में मिलने वाले हरियल (हरा कबूतर) को पकड़ने के लिए शिकारी चारा-पानी का लालच देते हैं। फिर, एक साथी की आंखों को पलटाकर उसे जाल में उलटा लटका देते हैं। यह देखकर झुंड में अन्य हरियल पक्षी पहुंचते हैं और जाल में फंस जाते हैं। जाल में झुंड में चिड़ियों के घुसते ही शिकारी सभी चिड़ियों को दबोच लेता है।
उदंती सीता नदी अभयारण्य में, उपनिदेशक वरुण जैन ने ऐसे ही एक वाकये में एक हरे कबूतर को शिकारी के चुंगल से निकाला।
वरुण जैन सोमवार को अरसी कन्हार रेंज के पश्चिम जोरा तराई बिट निरीक्षण में निकले हुए थे, तभी उनकी नजर जंगल में मौजूद नाले में लगाए गए जाल पर पड़ी। जिसमें दो-तीन हरियल चिड़िया फंसा हुए थे। जाल के पास वन विभाग के लोगों को पहुंचते देख शिकारी भाग खड़ा हुआ। टीम ने जाल में फंसे चिड़ियों को बाहर सुरक्षित निकाला।
वरुण जैन ने बताया कि गर्मी में प्यासी चिड़ियों के लिए झेरिया खोदा जाता है, फिर दाना डाला जाता है, और एक झोपड़ी भी बनाया जाता है, जिसमें चिड़िया आराम कर सके। इसी जगह पर लगभग 25 से 30 मीटर जाल का फांस तैयार किया गया था। पहले से फंसे चिड़ियों की आंखें को पलटाकर जाल में लटका दिया गया था, कुछ पर भी कतर दिए गए थे, ताकि चिड़िया उड़ न सके। जाल में मौजूद इन्हीं लाचार पंक्षियों को देख दूसरे पक्षी भी आते हैं। जब इनकी संख्या बढ़ जाती है, तो जाल में फंसा दिया जाता है।
हरियल चिड़िया जिसे हरा कबूतर भी कहते हैं, खाने में स्वादिष्ट और पौष्टिक होने के कारण जंगली क्षेत्र से जुड़े शहरो के ढाबों में इसकी भारी मांग रहती है। 350 ग्राम के एक कबूतर के लिए एक हजार रुपए तक शौकीन दे जाते हैं। ये उदंती सीता नदी अभयारण्य इलाके में बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं। ओडिसा के शिकारी ज्यादातर इसका शिकार करते हैं, फिर इसे ओडिसा के अलावा धमतरी जिले के हाइवे में पड़ने वाले ढाबों तक इसकी सप्लाई होती है। शिकारी इसे अधिकतम 300 रुपए में बेचते हैं, थाली में सजने के बाद इसकी कीमत 1 हजार हो जाती है।
वरुण जैन ने कहा कि इन इलाकों में अब पेट्रोलिंग बढ़ाई जा रहे हैं। गर्मी में पानी की कमी होते ही पानी के स्रोतों के आसपास शिकारी सक्रिय होते हैं। इन पर नकेल कसने की योजना बना ली गई है।