बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य में भांग की व्यावसायिक खेती की अनुमति देने की मांग को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक किसी याचिका में वास्तविक जनहित न हो और वह केवल याचिकाकर्ता के निजी हितों से प्रेरित हो, तब तक उसे जनहित याचिका (PIL) नहीं माना जा सकता।
यह फैसला मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बीडी गुरु की खंडपीठ ने सुनाया। कोर्ट ने न सिर्फ याचिका खारिज की, बल्कि याचिकाकर्ता द्वारा जमा की गई सुरक्षा राशि जब्त करने का भी आदेश दिया।
क्या था मामला?
इस याचिका को एस. ए. काले नामक व्यक्ति ने दायर किया था। उन्होंने दावा किया कि भांग एक ‘गोल्डन प्लांट’ है और इसके आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों को ध्यान में रखते हुए इसकी खेती की अनुमति दी जानी चाहिए।
काले ने कहा कि उन्होंने 22 फरवरी 2024 को इस संबंध में सभी संबंधित अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा था, लेकिन अब तक न तो कोई कार्रवाई हुई और न ही उन्हें कोई जवाब मिला। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि एनडीपीएस अधिनियम 1985 (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act) के अंतर्गत भांग की औद्योगिक, वैज्ञानिक और बागवानी उपयोगों के लिए खेती की अनुमति है, इसलिए राज्य सरकार को इस दिशा में नीति बनानी चाहिए।
कोर्ट ने क्यों किया याचिका खारिज?
कोर्ट ने कहा कि नीति बनाना और उसे लागू करना सरकार की जिम्मेदारी होती है, न कि न्यायपालिका की। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने इस याचिका को जनहित का रूप दिया, जबकि यह मामला पूरी तरह निजी रुचि से प्रेरित है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा—
“कोई भी जनहित याचिका तब तक मान्य नहीं हो सकती जब तक उसमें वास्तविक जनहित प्रदर्शित न किया गया हो। यह याचिका न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।”
कोर्ट ने आगे यह भी स्पष्ट किया कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत भांग की खेती प्रतिबंधित है, सिवाय उन मामलों के जहां सरकार विशेष उद्देश्यों के तहत वैधानिक प्रक्रिया के अनुरूप अनुमति देती है। ऐसे में यह मामला पूरी तरह नीतिगत निर्णय से जुड़ा हुआ है, जिसमें न्यायालय का दखल देना संविधान की मर्यादा के खिलाफ होगा।