Gariyaband : विश्व प्रसिद्ध एलेक्जेंडर खदान के पास स्थित सेनमूडा क्षेत्र में अवैध खनन का मामला सामने आया है। गुरुवार को तहसीलदार चितेश देवांगन द्वारा निरीक्षण के दौरान खुदाई के प्रमाण मिले। यह अवैध गतिविधि खदान के घेरे से सटे जमीन पर हो रही थी, जिसका मालिकाना हक कुंती बाई और माधो के पास है।
तहसीलदार ने निरीक्षण में पाया कि दो अलग-अलग स्थानों पर 7-8 फीट लंबी सुरंग जैसी खुदाई की गई है। खुदाई के बाद मिट्टी को धुलकर वापस भरने के भी प्रमाण मिले हैं। प्रारंभिक जांच में यह अनुमान लगाया गया कि यह खुदाई सप्ताहभर पहले की गई होगी। फसल कटाई के बाद इस गतिविधि को अंजाम दिया गया है।
तहसीलदार ने ग्राम कोटवार और स्थानीय प्रतिनिधियों को सतर्क रहने और खनन की स्थिति में तुरंत सूचना देने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि मामले की रिपोर्ट उच्च अधिकारियों को सौंपी जाएगी और उनके मार्गदर्शन में आगे की कार्रवाई की जाएगी।
1987 में हुआ था एलेक्जेंडर की मौजूदगी का खुलासा
1987 में इस खदान से पहली बार एलेक्जेंडर पत्थर निकलने की पुष्टि हुई थी। यह जमीन सहदेव नेताम की थी, जिसे अधिग्रहित कर माइनिंग कॉर्पोरेशन ने 12 डिसमिल क्षेत्र में घेरा डाल दिया। 2009 तक यहां सशस्त्र सुरक्षा बल तैनात रहे। इस दौरान पूर्वेक्षण के नाम पर गहरी खुदाई की गई और सैकड़ों ट्रक मिट्टी निकालकर भेजी गई। रिकॉर्ड के अनुसार, इससे 418 एलेक्जेंडर के टुकड़े निकले, लेकिन उस मिट्टी और पत्थरों का बड़ा हिस्सा तत्कालीन नेताओं के घरों तक पहुंचा, जिसकी जानकारी सबको है।
अवैध खनन और तस्करी का दौर
1990 के दशक में एलेक्जेंडर की बड़े पैमाने पर तस्करी हुई। 2010 में सुरक्षा हटा लेने के बाद खदान के आसपास की जमीनों पर अवैध खुदाई फिर शुरू हो गई। इन गतिविधियों में कीमती पत्थरों के मिलने की भी पुष्टि हुई है।
मुआवजे से वंचित जमीन मालिक आज भी बदहाल
कीमती रत्नों से भरपूर जमीन के असली मालिक सहदेव नेताम के परिवार को आज तक न्याय नहीं मिला। खदान अधिग्रहण की प्रक्रिया में त्रुटियों के चलते सहदेव के उत्तराधिकारियों को मुआवजा नहीं मिला। 1995 में सहदेव के उत्तराधिकारी प्यारी सिंह को नौकरी से निकाल दिया गया, और उनका परिवार अब भी कच्ची झोपड़ी में रहने को मजबूर है।
राजस्व रिकॉर्ड में इस जमीन को खदान के रूप में दर्ज नहीं किया गया है, जिसके चलते मालिकों को कानूनी रूप से अपने अधिकारों की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इस अनदेखी का खामियाजा एक परिवार दशकों से भुगत रहा है।