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छत्तीसगढ़ मंडियों में लहसुन का भाव जमीन पर, किसानों को भारी नुकसान

रायपुर/बिलासपुर। कुछ महीने पहले तक आसमान छू रहे लहसुन के दाम अब औंधे मुंह गिर चुके हैं। जहां पिछले साल अगस्त-सितंबर में लहसुन 400 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया था, वहीं इस साल जून के महीने में यह 50 से 90 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गया है। इसकी वजह है मंडियों में लहसुन की बंपर आवक, जिससे सप्लाई अधिक और मांग कम हो गई है। इसका सीधा असर किसानों की कमाई पर पड़ा है, जिन्हें अब लागत का भी ठीक से मूल्य नहीं मिल पा रहा।

बिलासपुर मंडी में भारी आवक, भाव 5000 से 9000 रु. प्रति क्विंटल

बिलासपुर की प्रमुख थोक फल एवं सब्जी मंडी – तिफरा मंडी में इन दिनों लहसुन की भारी आमद देखी जा रही है। मंडी में सोमवार को लहसुन का थोक भाव 5000 से 9000 रुपये प्रति क्विंटल दर्ज किया गया, यानी खुदरा दाम 50 से 90 रुपये किलो तक रहा। थोक व्यापारियों के अनुसार, इतनी बड़ी मात्रा में आवक पहले कम ही देखने को मिली है।

एमपी, राजस्थान और यूपी से लहसुन की भरमार

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, मुंगेली और गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले के किसान भी लहसुन की खेती करते हैं, लेकिन इस बार तिफरा मंडी में ज्यादातर लहसुन मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से आ रहा है। इन राज्यों में लहसुन की खेती बड़े पैमाने पर हुई है, जिससे उत्पादन अधिक हुआ और उसका असर बाजार मूल्य पर पड़ा।

पिछले साल के ऊंचे दामों से किसान हुए गुमराह

थोक सब्जी व्यापारी संघ के अध्यक्ष ने बताया कि पिछले साल अगस्त-सितंबर में जब लहसुन की कीमत 400 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई थी, तब किसानों को बड़ा मुनाफा मिला था। यही वजह रही कि इस बार देशभर में किसानों ने लहसुन की बुवाई बड़े पैमाने पर की। लेकिन इस वर्ष उत्पादन इतना अधिक हुआ कि मंडियों में लहसुन की सप्लाई डिमांड से कहीं ज्यादा हो गई। इससे भाव में तेज गिरावट आई और अब किसान अपनी उपज औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं।

कम दाम का असर अगली फसल पर पड़ेगा

व्यापारियों का अनुमान है कि लहसुन के दामों में आने वाले एक-दो महीने में मामूली सुधार हो सकता है, लेकिन बहुत अधिक उम्मीद नहीं है। वहीं, इस वर्ष घाटा झेल रहे किसान संभवतः अगले साल लहसुन की खेती कम करेंगे। इससे अगले वर्ष इसकी आपूर्ति कम हो सकती है, जिससे भाव में फिर तेजी देखने को मिलेगी।

किसानों को नहीं मिल पा रही लागत

लहसुन की खेती में बीज, खाद, सिंचाई, कीटनाशक और श्रम पर भारी खर्च आता है। लेकिन मौजूदा कीमतों पर किसानों को उनकी लागत भी नहीं मिल रही। ऐसे में कई छोटे किसान आर्थिक संकट में हैं। अगर यही स्थिति बनी रही, तो उन्हें अगले सीजन में लहसुन की खेती छोड़ने या कम करने पर मजबूर होना पड़ेगा।

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