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जानिए बसंत पंचमी के दिन क्यों गाड़ा जाता है होलिका दहन का डंडा? अनोखी है छत्तीसगढ़ की ये परंपरा

बसंत पंचमी के दिन अरंड या एरंड की डाली गाड़ने की एक खास और अनोखी परंपरा है। यह परंपरा छत्तीसगढ़ के गांवों और शहरों में भी निभाई जाती है। बसंत पंचमी के दिन, लोग विधि-विधान से अरंड की डाली गाड़ते हैं और उसके बाद होलिका दहन के लिए लकड़ी इकट्ठा करना शुरू करते हैं।

होलिका दहन के लिए पहली लकड़ी बसंत पंचमी के दिन गाड़ने की मान्यता इसलिए है कि भक्त प्रह्लाद को हिरण्याकश्यप के द्वारा 45 दिनों तक प्रताड़ित किया गया. होलिका दहन से पहले ये क्रम 45 दिन तक चला था. इसलिए ऐसा माना जाता है कि जिस पहले दिन भक्त प्रहलाद को प्रताड़ित करना शुरू किया गया, उसी दिन से ही होलिका के दहन के लिए एक-एक लकड़ी इकट्ठी करनी शुरू कर दी गई थी. इसलिए आज भी होली के पूर्व बसंत पंचमी को होलिका दहन की पहली लकड़ी गाड़ी जाती है.

यह एक ऐसा अवसर है जब लोग एक दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं और अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखते हैं।

यह परंपरा छत्तीसगढ़ की संस्कृति और परंपराओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह लोगों को अपनी जड़ों से जोड़ता है और उन्हें अपनी संस्कृति पर गर्व करने के लिए प्रेरित करता है।

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