बड़ी लापरवाही: 55% गांवों में मनरेगा के काम की सोशल ऑडिट ठप, आधे पद खाली होने से नहीं हो पा रही जांच

रायपुर/बिलासपुर। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत होने वाले कार्यों की सोशल ऑडिट (सामाजिक अंकेक्षण) प्रणाली सरकारी लापरवाही का शिकार हो गई है। पारदर्शिता और भ्रष्टाचार रोकने के लिए अनिवार्य यह प्रक्रिया देश के 55 प्रतिशत से अधिक गांवों में समय पर पूरी नहीं हो पा रही है। इसका मुख्य कारण सोशल ऑडिट यूनिट्स (SAU) में आधे से अधिक पद खाली पड़े होना है।

खाली पदों के कारण ऑडिट सिस्टम ठप

प्राप्त जानकारी के अनुसार, मनरेगा के तहत कार्यों की जांच के लिए बनाई गई सोशल ऑडिट टीमों में कर्मचारियों की भारी कमी है।

• सोशल ऑडिट यूनिट्स (SAU) में जिला सोशल ऑडिट कोऑर्डिनेटर (DSAC), ब्लॉक रिसोर्स पर्सन (BRP) और फील्ड मॉनिटर जैसे महत्वपूर्ण पद बड़े पैमाने पर रिक्त हैं।

• कर्मचारियों की कमी के चलते, ऑडिट टीमों को पर्याप्त समय, संसाधन और प्रशिक्षण नहीं मिल पाता है।

• नियमों के अनुसार, हर 6 महीने में मनरेगा के कार्यों का सोशल ऑडिट किया जाना अनिवार्य है ताकि भ्रष्टाचार, अनियमितताएं और गुणवत्ताहीन काम पकड़ा जा सके, लेकिन आधे पद खाली होने के कारण यह प्रक्रिया लगभग ठप हो गई है।

ग्राम पंचायतों में सिर्फ ‘खानापूर्ति’

जहां ऑडिट हो भी रहा है, वहां वह केवल खानापूर्ति तक सीमित रह गया है:

1. अभिलेखों की कमी: ग्राम पंचायत सचिवों द्वारा मनरेगा से संबंधित विकास कार्यों के अभिलेख और दस्तावेज समय पर उपलब्ध नहीं कराए जाते हैं, जिससे ऑडिट टीम को जांच में भारी दिक्कत आती है।

2. खुली बैठकें नहीं: ऑडिट प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा ग्राम पंचायत में होने वाली खुली बैठक है, जिसमें ग्रामीणों को अपनी शिकायतें दर्ज कराने का मौका मिलता है। कर्मचारियों की कमी के कारण ये बैठकें ठीक से आयोजित नहीं हो पातीं या लोग अनुपस्थित रहते हैं।

3. वित्तीय कमी: कई राज्यों में सोशल ऑडिट इकाइयों को केंद्र से समय पर फंड आवंटित नहीं हो पाता, जिससे कर्मचारियों को मानदेय मिलने में देरी होती है और उनका मनोबल गिरता है।

पारदर्शिता पर बड़ा खतरा

विशेषज्ञों का कहना है कि मनरेगा की सोशल ऑडिट प्रणाली को कमजोर करने से योजना में पारदर्शिता का अभाव बढ़ेगा और गरीब तथा वंचित वर्ग के लाभार्थियों को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा। इस लापरवाही के कारण योजनाओं में अनियमितताएं नहीं पकड़ी जा सकेंगी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा।

सरकार को तत्काल रिक्त पदों को भरकर और सोशल ऑडिट यूनिट्स को स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए पर्याप्त मानदेय और वित्तीय सहायता सुनिश्चित करने की जरूरत है।

You May Also Like

More From Author