रायपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कई दशकों तक प्रचारक रहे और छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रबल समर्थक नंदकिशोर शुक्ल इन दिनों भारी नाराज हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ में नई शिक्षा नीति के विपरीत हो रहे प्रयोगों को लेकर सरकार पर तीखा हमला बोला है। शुक्ल ने सोशल मीडिया के जरिए अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए सड़क पर उतरकर आंदोलन की चेतावनी दी है।
क्यों नाराज हैं शुक्ल?
शुक्ल की नाराजगी का कारण है—छत्तीसगढ़ की प्राथमिक कक्षाओं में ‘दूभाषी फार्मूले’ के तहत भाषा पढ़ाने का प्रयोग, जिसमें कक्षा पहली और दूसरी में 50% छत्तीसगढ़ी और 50% हिंदी को एक ही भाषा विषय में पढ़ाया जा रहा है। शुक्ल ने इसे “मानसिक अत्याचार” बताते हुए तीखा विरोध दर्ज किया है।
उनका कहना है कि,
“देश में कहीं भी ऐसा प्रयोग नहीं हो रहा, तो छत्तीसगढ़ में क्यों? क्या यहां के बच्चों को प्रयोगशाला समझा गया है? एक ही किताब में एक ही पीरियड में दो भाषाएं पढ़ाना बच्चों के साथ अन्याय है।”
शिक्षा नीति का उल्लंघन और गुमराह होते मुख्यमंत्री
शुक्ल ने आरोप लगाया कि यह सब नई शिक्षा नीति 2020 के खिलाफ है, जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि कक्षा 5 तक मातृभाषा में शिक्षा दी जानी चाहिए। उनका दावा है कि राज्य सरकार मोदी सरकार की इस नीति को लागू नहीं कर पा रही है, और इसके पीछे कुछ अधिकारियों का षड्यंत्र है जो एक “भोले-भाले आदिवासी मुख्यमंत्री को गुमराह” कर रहे हैं।
बड़ी साजिश का आरोप
शुक्ल का मानना है कि यह छत्तीसगढ़ी भाषा को कमजोर करने की एक साजिश है। उन्होंने कहा कि,
“गैर-छत्तीसगढ़ीभाषी अधिकारी मातृभाषा को दबाने और छत्तीसगढ़ी समाज के प्रभाव को खत्म करने के लिए सुनियोजित प्रयास कर रहे हैं।”
केंद्र से लेकर संघ तक उठाई बात
शुक्ल ने बताया कि वे पिछले 30 वर्षों से छत्तीसगढ़ी भाषा की पढ़ाई-लिखाई और मान्यता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और संघ प्रमुख मोहन भागवत तक अपनी बात पहुंचाई है। शुक्ल छत्तीसगढ़ी राजभाषा मंच के संरक्षक हैं और 2007 में छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा दिलाने में अहम भूमिका निभा चुके हैं।