Maa Chandraghanta : नवरात्रि के तीसरे दिन को मां चंद्रघंटा की पूजा के लिए समर्पित माना गया है। देवी दुर्गा के इस तीसरे स्वरूप की पूजा से साधक को असीम शौर्य, पराक्रम, और साहस का वरदान मिलता है। माना जाता है कि मां चंद्रघंटा की कृपा से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और साधक निर्भयता प्राप्त करता है।
मां चंद्रघंटा का स्वरूप और प्रतीक
मां चंद्रघंटा का स्वरूप बहुत ही दिव्य और तेजस्वी है। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा स्थित है, जिससे उन्हें ‘चंद्रघंटा’ नाम मिला है। देवी का रंग सोने की तरह चमकीला है और उनका वाहन सिंह है, जो शक्ति और वीरता का प्रतीक है।
मां चंद्रघंटा के दस हाथ हैं, जिनमें उन्होंने विविध शस्त्र धारण किए हुए हैं। उनके हाथों में कमल, धनुष, बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा जैसे शस्त्र विराजमान हैं। यह देवी युद्ध मुद्रा में होती हैं, जो बुराई का नाश करने की उनकी शक्ति और संकल्प को दर्शाती है। तंत्र साधना में मां चंद्रघंटा मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं, जो हमारे शरीर की ऊर्जा का केंद्र माना जाता है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, मां चंद्रघंटा की पूजा का शुभ मुहूर्त इस वर्ष सुबह 11:46 बजे से 12:33 बजे तक का रहेगा। इस समय के दौरान विधिपूर्वक पूजा करने से देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
मां चंद्रघंटा की पूजा विधि
मां चंद्रघंटा की पूजा के लिए साधक को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और साफ-सुथरे वस्त्र धारण करने चाहिए। पूजा स्थल पर माता की मूर्ति को लाल या पीले कपड़े पर स्थापित करें। इसके बाद मां को कुमकुम और अक्षत चढ़ाएं। मां को पीले रंग का वस्त्र अर्पित करना शुभ माना जाता है।
पूजा के दौरान मां चंद्रघंटा को खीर और दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाना चाहिए, क्योंकि उन्हें यह विशेष प्रिय है। इसके अलावा, पंचामृत का भी भोग लगाएं। पंचामृत दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण होता है, जिसे पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। दुर्गा सप्तशती का पाठ और मां चंद्रघंटा की आरती करने से पूजा पूर्ण होती है।
मां चंद्रघंटा का प्रिय भोग
देवी को विशेष रूप से खीर का भोग अर्पित किया जाता है। केसर या साबूदाने की खीर मां को अति प्रिय है। पंचामृत में दूध, दही, घी, शहद, और गंगाजल मिलाकर तैयार किया जाता है, जिसे मां चंद्रघंटा को चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। यह पंचामृत पांच गुणों का प्रतीक है, जो जीवन में शुद्धता, पोषण, और संतुलन लाता है।
मां चंद्रघंटा के पूजा मंत्र
पूजा के दौरान मां चंद्रघंटा के निम्न मंत्र का जाप किया जाता है:
“पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥”
यह मंत्र मां की शक्ति और कृपा को जागृत करने का साधन है। इसके अलावा, मां की आराधना के दौरान देवी के निम्न मंत्र का भी उच्चारण किया जाता है:
“या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नम:।।”
मां चंद्रघंटा की आरती
मां चंद्रघंटा की आरती भी उनकी महिमा का वर्णन करती है:
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम।
पूर्ण कीजो मेरे काम।।
चंद्र समान तू शीतल दाती।
चंद्र तेज किरणों में समाती।।
क्रोध को शांत बनाने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली।।
मन की मालक मन भाती हो।
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो।।
सुंदर भाव को लाने वाली।
हर संकट मे बचाने वाली।।
हर बुधवार जो तुझे ध्याये।
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय।।
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं।
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं।।
शीश झुका कहे मन की बाता।
पूर्ण आस करो जगदाता।।
कांची पुर स्थान तुम्हारा।
करनाटिका में मान तुम्हारा।।
नाम तेरा रटू महारानी।
भक्त की रक्षा करो भवानी।।
आरती में देवी की शांति, साहस, और संकटों से रक्षा करने की क्षमता का गुणगान किया गया है। यह भक्तों के मन को शांत करती है और उनमें शौर्य और धैर्य का संचार करती है।
मां चंद्रघंटा पूजा का महत्व
मां चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति में साहस, आत्मविश्वास, और शौर्य का विकास होता है। माना जाता है कि देवी के आशीर्वाद से भक्त जीवन के किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम हो जाता है। यह पूजा आध्यात्मिक रूप से भी व्यक्ति को सशक्त बनाती है और उसे अध्यात्म की ओर अग्रसर करती है।
मां चंद्रघंटा के आशीर्वाद से साधक के जीवन में शांति, समृद्धि, और सुख-समृद्धि का वास होता है। मां की कृपा से न केवल मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति मिलती है, बल्कि जीवन के भौतिक संकट भी समाप्त हो जाते हैं।