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नक्सल पीड़ित परिवारों ने लगाई न्याय की गुहार, बोले– “नीति बनी लेकिन हक नहीं मिला”

खैरागढ़। बुधवार का दिन राजनांदगांव रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) कार्यालय के लिए असामान्य रहा। खैरागढ़, मानपुर और राजनांदगांव इलाके से बड़ी संख्या में नक्सल पीड़ित परिवार यहां पहुंचे। कोई बुज़ुर्ग मां अपने शहीद बेटे की तस्वीर हाथ में लिए खड़ी थी तो कोई महिला छोटे बच्चों संग न्याय की गुहार लेकर आई थी। सभी की एक ही आवाज थी – “हमें पुनर्वास नीति का हक चाहिए।”

“कागजों पर नीति, जमीनी हकीकत शून्य”

परिवारों ने आईजी को ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने इस साल नक्सलवादी आत्मसमर्पण/पीड़ित राहत पुनर्वास नीति-2025 लागू की है। इसमें आश्रितों को शासकीय नौकरी, 15 लाख रुपये का मुआवज़ा, आवास और बच्चों की शिक्षा की गारंटी का प्रावधान है।

लेकिन पीड़ितों का कहना है कि हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। आज तक किसी आश्रित को न तो नौकरी मिली, न मुआवज़ा, न ही पुनर्वास की कोई ठोस सुविधा। एक परिजन ने कहा, “हम सालों से चक्कर काट रहे हैं। कभी कलेक्टर के पास जाते हैं, कभी तहसील कार्यालय, लेकिन सुनवाई नहीं होती। अधिकारी सिर्फ आश्वासन देते हैं, हक नहीं।”

मानपुर से आए परिवारों ने भी यही दर्द साझा किया। उनका कहना था कि नक्सल हिंसा ने पहले उनका सहारा छीना और अब सरकारी उपेक्षा ने उनकी उम्मीदें भी तोड़ दी हैं।

आंदोलन की चेतावनी

पीड़ित परिवारों के नेता धीरेंद्र साहू ने कहा कि अब और चुप नहीं बैठेंगे। “अगर हमारी मांगें पूरी नहीं हुईं तो हम सब रायपुर जाकर राजधानी में आंदोलन करेंगे। हम अपने हक के लिए आख़िरी दम तक लड़ेंगे।”

ज्ञापन में मांग की गई कि मृतक आश्रितों को तुरंत नौकरी या 15 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाए, आवास और जमीन का आवंटन किया जाए और बच्चों की शिक्षा की पूरी जिम्मेदारी सरकार उठाए।

“अफसरशाही की बेरुखी से भटक रहे लोग”

धीरेंद्र साहू ने कहा कि केवल नीति लागू करना पर्याप्त नहीं है। “उसे पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से लागू करना ही असली न्याय है। नक्सल हिंसा से तबाह परिवार अब प्रशासनिक उपेक्षा की वजह से और कठिनाई झेल रहे हैं। कभी नक्सलियों के डर से गांव छोड़ना पड़ा, अब अफसरशाही की बेरुख़ी से दर-दर भटकना पड़ रहा है। सरकार ने कागज पर राहत की नीतियां बना दीं, लेकिन पीड़ितों तक लाभ नहीं पहुंचा। यही वजह है कि आज हम चेतावनी दे रहे हैं कि अगर हक नहीं मिला तो हम सड़कों पर उतरेंगे।”

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