बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने संविदा कर्मचारियों के हित में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सिर्फ संविदा पर होने के आधार पर किसी महिला कर्मचारी को मातृत्व अवकाश के दौरान वेतन से वंचित नहीं किया जा सकता। यह आदेश जिला अस्पताल कबीरधाम में कार्यरत स्टाफ नर्स राखी वर्मा की याचिका पर सुनाया गया है।
जस्टिस अमितेन्द्र किशोर प्रसाद की एकल पीठ ने राज्य प्राधिकरणों को निर्देश दिया है कि वे याचिकाकर्ता द्वारा दायर मातृत्व अवकाश के वेतन से जुड़ी मांग पर छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 2010 के तहत तीन माह के भीतर निर्णय लें।
कोर्ट ने कहा कि मातृत्व और शिशु की गरिमा का अधिकार भारतीय संविधान में अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है और यह प्रशासनिक अधिकारियों की इच्छा पर निर्भर नहीं हो सकता। मातृत्व लाभ अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट ने कल्याणकारी कानून करार दिया है, जो केवल नियमित कर्मचारियों तक सीमित नहीं रखा जा सकता।
राखी वर्मा ने 16 जनवरी 2024 से 16 जुलाई 2024 तक मातृत्व अवकाश लिया था। 21 जनवरी को उन्होंने एक कन्या को जन्म दिया और 14 जुलाई को ड्यूटी पर वापस लौटीं। लेकिन इस अवधि का वेतन उन्हें अब तक नहीं दिया गया, जिससे उन्हें और उनके नवजात को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जब 25 फरवरी 2025 को सीएमएचओ को आवेदन देने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई, तो उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्रीकांत कौशिक ने दलील दी कि छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (अवकाश) नियम, 2010 का नियम 38 संविदा कर्मचारियों पर भी समान रूप से लागू होता है और मातृत्व अवकाश एक कानूनी अधिकार है। उन्होंने पूर्व में आए निर्णयों का हवाला भी दिया, जिसमें संविदा कर्मचारियों को मातृत्व लाभ प्रदान करने की पुष्टि की गई थी।
राज्य की ओर से महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता संविदा पर हैं और उन्हें स्थायी कर्मचारियों जैसे लाभ नहीं मिल सकते। मगर कोर्ट ने इसे अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन मानते हुए कहा कि यह भेदभावपूर्ण है और समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।