पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे पंचतत्व में विलीन: हास्य-व्यंग्य की आवाज ने हमेशा के लिए कहा अलविदा

रायपुर। छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश और विदेशों में अपनी कविताओं से लोगों को गुदगुदाने और गहराई से सोचने पर मजबूर करने वाले प्रख्यात कवि पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे आज पंचतत्व में विलीन हो गए। उनका अंतिम संस्कार राजधानी रायपुर के बूढ़ातालाब स्थित मारवाड़ी श्मशान घाट में पूरे सम्मान के साथ किया गया। अंतिम यात्रा में साहित्य, राजनीति और कला जगत की दिग्गज हस्तियों ने उन्हें नम आंखों से अंतिम विदाई दी।

अंतिम यात्रा में उमड़ा जनसैलाब

सुबह 10:30 बजे उनका पार्थिव शरीर अशोका प्लैटिनम स्थित आवास से श्मशान घाट तक लाया गया। अंतिम संस्कार में भाजपा प्रदेश संगठन महामंत्री पवन साय, वित्त मंत्री ओपी चौधरी, गृहमंत्री विजय शर्मा, राम विचार नेताम, विधायक अनुज शर्मा, सुनील सोनी सहित अनेक राजनीतिक हस्तियां शामिल हुईं।
साहित्यिक जगत से कुमार विश्वास, सुदीप भोला, सुनील तिवारी, और सूफी भजन गायक मदन चौहान सहित कई लोग मौजूद रहे।

ACI अस्पताल में हुआ निधन

डॉ. दुबे को 26 जून को तबीयत बिगड़ने पर रायपुर के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट (ACI) में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान उन्हें हार्ट अटैक आया और उन्होंने अंतिम सांस ली।

व्यंग्य को बनाया सामाजिक चिंतन का माध्यम

डॉ. सुरेंद्र दुबे सिर्फ एक कवि नहीं, बल्कि शब्दों के साधक थे। उन्होंने हास्य और व्यंग्य को केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे सामाजिक जागरूकता का माध्यम बनाया। उनकी कविताएं सामाजिक विसंगतियों पर करारा प्रहार करती थीं। वे मंच पर जितने सहज और व्यंग्यपूर्ण होते थे, उतनी ही उनकी बातों में गहराई होती थी।

साहित्यिक जीवन और उपलब्धियां

  • जन्म: 8 अगस्त 1953, बेमेतरा (छत्तीसगढ़)
  • पेशा: आयुर्वेदिक चिकित्सक, पर असल पहचान हास्य कवि के रूप में
  • कृतियां: 5 किताबें, अनेकों मंचीय प्रस्तुतियां और टीवी शोज़
  • सम्मान:
    • पद्मश्री (2010)
    • काका हाथरसी हास्य रत्न पुरस्कार (2008)
    • पं. सुंदरलाल शर्मा सम्मान (2012)
    • अट्टहास सम्मान
    • लीडिंग पोएट ऑफ इंडिया – अमेरिका
    • हास्य शिरोमणि सम्मान – वाशिंगटन
    • छत्तीसगढ़ रत्न – शिकागो

उनकी रचनाओं पर देश के 3 विश्वविद्यालयों ने पीएचडी की उपाधि दी है, जो उनकी साहित्यिक विरासत की गहराई को दर्शाता है।

अंतरराष्ट्रीय पहचान

डॉ. दुबे ने छत्तीसगढ़ की माटी से निकलकर अमेरिका, कनाडा, यूएई जैसे देशों में हिंदी कविता की मशाल जलाकर अपनी अलग पहचान बनाई। उनकी रचनाएं मंचीय प्रस्तुतियों से लेकर अकादमिक शोध तक विषय बनीं।

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