राजिम। पवित्र त्रिवेणी संगम तट पर राजिम कुंभ कल्प मेला 2025 का भव्य आयोजन जारी है। 21 फरवरी से संत समागम के शुभारंभ के साथ ही देशभर से साधु-संतों का आगमन तेज हो गया है। तपस्वी संतों की वाणी से वातावरण भक्तिमय हो उठा है, और श्रद्धालु उनकी दिव्य उपस्थिति से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त कर रहे हैं।
महंत चंदन भारती बने श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र
लोमष ऋषि आश्रम में पहुंचे महंत चंदन भारती श्रद्धालुओं के विशेष आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। वे जुना अखाड़ा से संबंध रखते हैं और उनके गुरु सुशील भारती हैं। उनकी छह फीट लंबी जटा और दाढ़ी ने भक्तों का ध्यान खींचा है। श्रद्धालु उनके दर्शन और आशीर्वाद के लिए बड़ी संख्या में उमड़ रहे हैं।
16 वर्षों से राजिम कुंभ का हिस्सा
महंत चंदन भारती ने बताया कि वे साल 2006 से लगातार हर वर्ष राजिम कुंभ कल्प में शामिल हो रहे हैं। इस बार वे प्रयागराज कुंभ से सीधे यहां पहुंचे हैं। वे अपने तपस्वी जीवन को शिव भक्ति में समर्पित कर चुके हैं और विभिन्न स्थानों पर साधना करते रहते हैं।
जटा धारण का धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व
साधु-संतों द्वारा जटा धारण करने की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। महंत चंदन भारती के अनुसार, जटा केवल एक पहचान नहीं, बल्कि त्याग, तपस्या और साधना का प्रतीक है। शिव भक्ति में लीन संत सांसारिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर जंगलों, पहाड़ों और आश्रमों में साधना करते हैं।
उन्होंने बताया कि सन्यास धारण करने के बाद ही व्यक्ति साधु बनता है और सांसारिक मोह-माया से मुक्त होकर आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक पहुंचता है। जटा धारण करने का धार्मिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व भी है, जो ऊर्जा संचार और साधना में सहायक माना जाता है।
श्रद्धालुओं की आस्था चरम पर, कुंभ में उमड़ रही भीड़
देशभर से आए संत-महात्माओं की उपस्थिति ने राजिम कुंभ कल्प मेले को और भी भव्य बना दिया है। प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम क्षेत्र में संतों का दर्शन करने पहुंच रहे हैं। यहां का सात्विक वातावरण, धार्मिक अनुष्ठान और आध्यात्मिक संवाद लोगों को भक्ति और ध्यान की ओर प्रेरित कर रहा है।
राजिम कुंभ कल्प: संस्कृति, आस्था और संत परंपरा का संगम
राजिम कुंभ कल्प केवल एक धार्मिक आयोजन भर नहीं, बल्कि भारतीय संत परंपरा, संस्कृति और आस्था का जीवंत संगम है। जैसे-जैसे संत समागम आगे बढ़ रहा है, श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ती जा रही है। मेले में भक्ति, साधना और धार्मिक अनुष्ठानों का माहौल चरम पर है, जो इसे एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव बना रहा है।