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अयोध्या में पंडवानी: तरुणा साहू ने अयोध्या में पंडवानी का बिखेरा जादू… दी शानदार प्रस्तुति

Pandavani in Ayodhya

Pandavani in Ayodhya

Pandavani in Ayodhya : RPF रायपुर पोस्ट प्रभारी तरुणा साहू ने अयोध्या में आयोजित एक महोत्सव में पंडवानी के कापालिक शैली की शानदार प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति में उन्होंने पाशुपत अस्त्र तपस्या के लिए शंकर अर्जुन संवाद और द्रोपदी चीर हरण का जीवंत चित्रण किया, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

तरुणा ने शंकर अर्जुन संवाद और द्रोपदी चीर हरण के प्रसंगों को जीवंत रूप से प्रस्तुत किया, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

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शंकर अर्जुन संवाद :

शंकर अर्जुन संवाद में, तरुणा ने भगवान शिव और अर्जुन के बीच हुए संवाद को बखूबी प्रस्तुत किया, जिसमें अर्जुन पाशुपत अस्त्र प्राप्त करने के लिए तपस्या करते हैं।

द्रोपदी चीर हरण :

द्रोपदी चीर हरण में, इस प्रसंग में तरुणा ने द्रोपदी के अपमान और चीर हरण की त्रासदी को बड़ी मार्मिकता से दर्शाया। दर्शकों ने इस प्रसंग को देखकर भावनाओं का ज्वार उमड़ता देखा।

तरुणा साहू – पद्म विभूषण डॉक्टर तीजन बाई की शिष्या:

तरुणा साहू पद्म विभूषण डॉक्टर तीजन बाई की शिष्या हैं। डॉक्टर तीजन बाई पंडवानी की प्रसिद्ध गायिका हैं, जिन्होंने इस कला को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। तरुणा ने अपनी गुरु से पंडवानी की बारीकियां सीखी हैं और उनकी कला को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं।

दर्शकों ने की प्रस्तुति की सराहना:

तरुणा साहू की पंडवानी प्रस्तुति को दर्शकों ने खूब सराहा। उन्होंने उनकी आवाज, अभिनय और भावपूर्ण प्रस्तुति की प्रशंसा की। तरुणा साहू ने अपनी प्रस्तुति से एक बार फिर पंडवानी कला की शक्ति और प्रभाव को दर्शा दिया है.

अयोध्या महोत्सव:

यह महोत्सव अयोध्या में आयोजित किया गया था, जिसमें देशभर से कलाकारों ने भाग लिया। तरुणा साहू इस महोत्सव में शामिल होने वाली एकमात्र कलाकार थीं, जिन्होंने पंडवानी की प्रस्तुति दी।

यह प्रस्तुति न केवल पंडवानी की कला का उत्कृष्ट प्रदर्शन थी, बल्कि रामायण और महाभारत के मूल्यों को भी दर्शाती थी। तरुणा साहू ने अपनी प्रस्तुति से अयोध्या में आयोजित महोत्सव को यादगार बना दिया।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि तरुणा RPF में एक अधिकारी भी हैं। वह अपनी ड्यूटी के साथ-साथ पंडवानी की कला को भी प्रोत्साहित करती हैं। तरुणा युवाओं के लिए प्रेरणा हैं और यह दर्शाती हैं कि कैसे कला और कर्तव्य दोनों को एक साथ निभाया जा सकता है।

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