हिंदू धर्म में सावन का महीना विशेष आध्यात्मिक महत्व रखता है, जो खासतौर पर भगवान शिव की आराधना का समय होता है। इस वर्ष 11 जुलाई 2025 से सावन का शुभारंभ हो चुका है, और यह माह पूरे देश में भक्ति, व्रत और पूजन का वातावरण लेकर आया है।
इस पवित्र महीने में एक विशेष परंपरा देखने को मिलती है—महिलाओं द्वारा हरे रंग के वस्त्र और चूड़ियाँ पहनना। क्या आपने कभी सोचा है कि सावन और हरे रंग के बीच क्या संबंध है? आइए जानते हैं इसके पीछे छिपे धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कारण—
हरा रंग: प्रकृति और समृद्धि का प्रतीक
सावन वर्षा ऋतु का महीना है, जब धरती हरियाली से ढंक जाती है। हरा रंग जीवन, ऊर्जा और नयापन का प्रतीक है। यह समृद्धि और सकारात्मकता का संदेश देता है। इसी वजह से हरे वस्त्र पहनना प्रकृति से जुड़ाव और पर्यावरण के सम्मान का प्रतीक माना जाता है।
सौभाग्य और सुहाग का संकेत
विवाहित महिलाएं इस महीने हरे रंग की चूड़ियाँ और साड़ियाँ पहनती हैं, क्योंकि यह रंग पति की लंबी उम्र, सौभाग्य और सुख-शांति का प्रतीक माना गया है। कुंवारी कन्याएं भी हरे रंग को पहनकर अच्छे जीवनसाथी की कामना करती हैं।
मानसिक शांति और ध्यान के लिए सहायक
हरा रंग केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से भी शांतिदायक माना गया है। यह तनाव कम करने और ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। चूंकि सावन में उपवास और पूजा का महत्व होता है, इसलिए यह रंग साधना में भी सहायक माना जाता है।
शिव-पार्वती की कथा से जुड़ा है हरा रंग
पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता पार्वती ने सावन के महीने में कठोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। विवाह के समय माता ने हरे वस्त्र और हरी चूड़ियाँ धारण की थीं। तभी से यह परंपरा महिलाएं आज भी निभाती हैं, ताकि उन्हें पार्वती जैसा सौभाग्य प्राप्त हो।