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छत्तीसगढ़ का वो विशेष समुदाय जिसे अयोध्या का न्यौता मिला, जाने कौन हैं रामनामी, और क्या है इनका इतिहास

अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हो गई है। और इस अवसर पर देश विदेश से वीआईपी लोगों को आमंत्रित किया गया था,इस पावन अवसर का साक्षी बनने के लिए । ऐसा ही एक न्यौता छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज को मिला था। आइए जानें क्या है रामनामी , क्या है इनका इतिहास?

कौन हैं रामनामी ..?

तकरीबन 100 सालों से भी ज्यादा लंबे वक्त से छत्तीसगढ़ की रामनामी समाज में एक अनोखी परंपरा चली आ रही है। इस समाज के लोग पूरे शरीर पर राम नाम का टैटू बनवाते हैं, मन में राम तन में राम कण कण में राम और उनके घर के दीवारों में भी राम के नाम छपे हुए हैं। लेकिन न मंदिर जाते हैं और न ही मूर्ति पूजा करते हैं। रामनामी समाज के पांच प्रमुख प्रतीक हैं। ये हैं भजन खांब या जैतखांब, शरीर पर राम-राम का नाम गोदवाना, सफेद कपड़ा ओढ़ना, जिस पर काले रंग से राम-राम लिखा हो, घुंघरू बजाते हुए भजन करना और मोरपंखों से बना मुकट पहनना है। सिर से लेकर पैर तक राम नाम, शरीर पर रामनामी चादर, मोरपंख की पगड़ी और घंघुरू रामनामियों की पहचान है। देश और दुनिया में एक-दूसरे का अभिवादन हेलो, हाय, नमस्कार आदि शब्दों से किया जाता है। लेकिन इस समुदाय के लोग एक-दूसरे से राम-राम कहकर मिलते हैं।

गोदना की कहानी

सारंगढ़- बिलाईगढ़ जिला मुख्यालय के बिलाईगढ़ से 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित चांदलीडीह गांव है जहां पर इस समाज के लोग काफी संख्या में मौजूद है। जो अपने पूरे शरीर पर राम नाम का टैटू लगा रखे हैं। इस तरह के टैटू को लोकल लैंग्वेज में इसे गोदना कहा जाता है। दरअसल, इसे भगवान की भक्ति के साथ ही सामाजिक बगावत के तौर पर भी देखा जाता है। टैटू बनवाने के पीछे बगावत की कहानी कहा जाता है कि 100 साल पहले गांव में ऊंची जाति के लोगों ने इस समाज को मंदिर में घुसने से मना कर दिया था। इसके बाद से ही इन्होंने विरोध करने के लिए चेहरे सहित पूरे शरीर में राम नाम का टैटू बनवाना शुरू कर दिया।

राम हमारे तन में है…

समुदाय की विशिष्ट विशेषता राम का टैटू है जिसके साथ कई रामनामी अपने शरीर और अपने चेहरे को ढकते हैं। समुदाय के वरिष्ठ सदस्य छोटे सदस्यों को गोदने के लिए लकड़ी की सुइयों और कालिख से काली स्याही का उपयोग करते हैं। यह प्रक्रिया अक्सर काफी दर्दनाक होती है। इस प्रक्रिया को पारंपरिक हिंदी शब्द गुदाई के बजाय अंकित कर्ण-शाब्दिक रूप से लेखन कहा जाता है।

इनको अयोध्या में भव्य राम मंदिर के शिलान्यास का न्योता मिला था लेकिन अपने रामनामी समाज के भजन मेला कार्यक्रम में शामिल होने के कारण यह अयोध्या में शामिल नहीं हो पाए।

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