Swami Vivekananda : नरेन्द्र नाथ से स्वामी विवेकानंद बनाने का सफर रायपुर से हुआ था शुरू

स्वामी विवेकानंद का जीवन प्रेरणा से भरा हुआ है। उन्होंने पूरे विश्व को मानवता और बंधुत्व से साक्षात्कार कराया। विश्वभर के अनेक लोगों ने स्वामीजी के विचारों को पढ़कर उनसे प्रेरित होकर अपने जीवन को सफल बनाया। स्वामीजी का छत्तीसगढ़ से गहरा नाता है। स्वामी विवेकानंद की आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मानी जाती है।

यह माना जाता है कि रायपुर आते समय रास्ते में एक मधुमक्खी का छत्ता देखकर उनके मन में अध्यात्म का बीज रोपित हुआ। बाद में रायपुर के दूधाधारी मठ, जैतुसाव मठ और महामाया मंदिर में होने वाले धार्मिक आयोजनों ने आध्यात्म के इस बीज को वृक्ष के रूप में विस्तार दिया। नरेंद्र नाथ दत्त ( स्वामी विवेकानंद ) ने वर्ष 1877 में रायपुर की धरती पर कदम रखा था। तब उनकी आयु केवल 13-14 साल की थी। 4 जुलाई 1902 को उनकी मौत हावड़ा के बेलुर मठ में हो गई थी। आज स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि है। ऐसे में हम आपको विवेकानंद से जुड़े एक रोचक किस्से को बताने वाले हैं जो शायद ही आपने कभी पढ़ा या सुना होगा।

पिता विश्वनाथ दत्त तब अपने कार्यवश रायपुर में रह रहे थे। जब उन्होंने देखा कि उन्हें रायपुर में काफी समय रहना पड़ेगा, तब उन्होंने अपने परिवार के लोगों को भी रायपुर बुला लिया। नरेंद्र अपने छोटे भाई महेंद्र, बहन जोगेंद्र बाला और माता भुवनेश्वरी देवी के साथ कलकत्ता से रायपुर के लिए रवाना हुए। तब रायपुर कलकत्ता से रेल-लाइन से नहीं जुड़ा था। उस समय रेलगाड़ी कलकत्ता से इलाहाबाद, जबलपुर, भुसावल होते हुए बंबई जाती थी। उनके कुछ जीवनीकारों ने लिखा है कि नरेंद्र और उनके घर के लोग नागपुर से बैलगाड़ी द्वारा रायपुर आए। नरेंद्र को इस यात्रा में जो एक अलौकिक अनुभव हुआ, वह संकेत करता है कि वे लोग जबलपुर से ही बैलगाड़ी द्वारा मंडला, कवर्धा होकर रायपुर आए।

देबाशीष चितरंजन राय द्वारा लिखित किताब ‘जर्नी आफ स्वामी विवेकानंद टू रायपुर एंड हिज फ‌र्स्ट ट्रांस’ में स्वामीजी को पहली बार होने वाली आध्यात्मिक अनुभूति के बारे में लिखा है। छत्तीसगढ़ आते समय रायपुर से 130 किलोमीटर दूर दरेकसा गुफा में मधुमक्खी का छत्ता देखकर उनके मन में पहली बार आध्यात्म का भाव जागा था। वे मधुमक्खियों के साम्राज्य की शुरुआत और अंत के बारे में सोचने लगे थे.

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