रायपुर। देश ने अभी-अभी 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाया है। लेकिन इस आज़ादी के बीच भारत एक और लड़ाई लड़ रहा है – नशे से आज़ादी की लड़ाई। आज महानगरों से लेकर गाँवों तक शराब, गांजा, जुआ और ड्रग्स युवाओं के जीवन और गाँवों की सांस्कृतिक धरोहर पर हमला कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य, जहां शराब की खपत सबसे अधिक मानी जाती है, वहां यह चुनौती और भी गंभीर है।
इन्हीं परिस्थितियों में बेमेतरा जिले की पांच पंचायतों ने सामूहिक संकल्प लेकर एक नई राह दिखाई है। इन पंचायतों ने नशे पर न सिर्फ पाबंदी लगाई, बल्कि नियम तोड़ने वालों पर 50 हजार रुपये तक जुर्माने का प्रावधान किया है।
खम्हरिया: जहां से शुरू हुआ अभियान
बेमेतरा विकासखंड के खम्हरिया पंचायत से दो महीने पहले यह पहल शुरू हुई। सरपंच रामदिल निषाद बताते हैं –
“गाँव में अवैध शराब बिक्री और युवाओं में बढ़ती लत ने हालात बिगाड़ दिए थे। पंचायत ने फैसला लिया कि न तो शराब बिकेगी और न ही कोई सार्वजनिक रूप से इसका सेवन करेगा। रात 10 बजे के बाद बिना कारण बैठकी या घूमना भी वर्जित है। नियम तोड़ने वालों पर 5 से 15 हजार का जुर्माना लगाया जा रहा है।”
मल्दा पंचायत: शराब और प्लास्टिक दोनों पर रोक
नवागढ़ विकासखंड की मल्दा पंचायत ने न सिर्फ नशे पर, बल्कि पानी पाउच और डिस्पोजल पर भी रोक लगाई।
सरपंच मनोज साहू बताते हैं –
“गाँव की सांस्कृतिक पहचान शराब और जुए से धूमिल हो रही थी। तालाब-नदियों में प्लास्टिक का कचरा बढ़ रहा था। इसलिए पंचायत ने तय किया कि न वैध न अवैध – किसी भी रूप में शराब की बिक्री नहीं होगी। उल्लंघन करने वालों पर 25 हजार तक दंड का प्रावधान किया गया है।”
कान्हरपुर: सबसे सख्त नियम
मल्दा से सटी कान्हरपुर बस्ती (पौंसरी पंचायत) ने सामूहिक निर्णय लेते हुए शराब बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। यहाँ नियम तोड़ने वालों पर 50 हजार रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है।
केशला: ढाबे का ताला
मल्दा के समीप केशला गाँव में एक अवैध ढाबा नशे का अड्डा बन गया था। कई पंचायतों के सहयोग से इसे बंद कराया गया।
सरपंच पप्पू देवांगन कहते हैं –
“ढाबा शराब और नशे का केंद्र बन गया था। सामूहिक प्रयास से इसे बंद कराया और गाँव में शराब-जुआ-सट्टा पूरी तरह बंद कर दिया गया।”
धोबघट्टी और मगरघटा: असर दिखा
खम्हरिया और मल्दा से प्रेरित होकर पड़ोसी पंचायतें धोबघट्टी और मगरघटा भी नशा मुक्ति की राह पर चलीं।
- धोबघट्टी सरपंच कलेश्वर बर्मन: “पूरी तरह छुटकारा तो नहीं, लेकिन अब गाँव में शांति है। 25 हजार तक जुर्माने का नियम लागू है।”
- मगरघटा सरपंच योगेश इंद्रा: “शराब बिक्री और सार्वजनिक सेवन दोनों पर रोक है। नियम तोड़ने पर 20 हजार तक का जुर्माना है।”
मिसाल बनी पंचायतें
छत्तीसगढ़ के इन गाँवों ने दिखाया कि नशा मुक्ति केवल सरकारी योजनाओं से संभव नहीं, बल्कि सामूहिक निर्णय और आत्मबल से ही बदलाव आता है। ये पंचायतें गांधीजी के ग्राम स्वराज की झलक पेश कर रही हैं।
ज़रूरत है सरकारी प्रोत्साहन की
अब ज़रूरत है कि जिला प्रशासन और राज्य-केन्द्र सरकारें इन पंचायतों को विशेष प्रोत्साहन दें, ताकि यह पहल और गाँवों तक पहुँचे। क्योंकि गाँव तभी सचमुच आज़ाद होंगे, जब वे नशे की जंजीरों से मुक्त होंगे।