कहानी उस पारी की, जिसने भारतीयों को क्रिकेट से जोड़ा

ये बात है क्रिकेट के मैदान में विरोधी पक्ष में गदर मचाने वाली उस पारी की जिसने 1983 विश्व कप विजय की राह को प्रशस्त किया… इस विश्व कप जीत की कहानी कई अविस्मरणीय क्षणों और छवियों से भरी पड़ी है। यशपाल शर्मा की शानदार बल्लेबाजी के दम पर भारत ने शक्तिशाली वेस्ट इंडीज को पहली बार विश्व कप में हराया, मोहिंदर अमरनाथ ने स्टंप के सामने माइकल होल्डिंग को कैच कराकर भारत को शानदार जीत दिलाई, कपिल देव ने पीछे की ओर दौड़कर विव रिचर्ड्स के शॉट को अपने कंधे के ऊपर से पकड़ा, या कप्तान प्रिंस चार्ल्स से प्रसिद्ध ट्रॉफी प्राप्त करना. लेकिन वो कहानी कभी और आज हम उस पारी की बात करेंगे जिसके दम पर भारत फाईनल में पहुंचा।

उस विश्वविजेता भारतीय टीम के कम्पोजीशन पर निगाह डालें तो लगता है कि वह वन डे क्रिकेट के लिहाज से भारत की आज तक की सबसे अच्छी टीम थी. टीम में दुनिया के सबसे अच्छे आलराउंडर माने जाने वाले कप्तान कपिल देव के साथ के आलराउंडरों का एक पूरा जत्था शामिल था

इनमें मदन लाल, मोहिंदर अमरनाथ, रोजर बिन्नी, रवि शास्त्री, कीर्ति आजाद शामिल थे. बल्लेबाजी की कमान सुनील गावस्कर, श्रीकांत, मोहिंदर अमरनाथ, संदीप पाटिल, दिलीप वेंगसरकर और यशपाल शर्मा के पास थी. किरमानी जैसा विकेटकीपर था और बलविंदर संधू जैसा स्विंग गेंदबाज.

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इतनी बेहतरीन टीम होने के बावजूद सच यह था कि भारत की टीम को टूर्नामेंट की सबसे कमज़ोर टीमों में से एक आंका जाता था.
ये मैच वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड पाकिस्तान या न्यूज़ीलैंड के खिलाफ नहीं हुआ था बल्कि ज़िम्बाब्वे टीम के खिलाफ हुआ था। ज़िम्बाब्वे, ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज को हरा चुकी थी और यही मैच था जो भारत को आगे या पीछे कर सकता था। सीधा प्रसारण करने वालो के हड़ताल के चलते ये मैच टेलीविजन में नहीं देखा जा सकता था हॉ रेडियो पर सुना जरूर गया। इस मैच को जो देख सके वे ही इस मैच के रोमांच के चश्मदीद गवाह बन पाए। भारतीय टीम के कप्तान कपिल देव ने इस मैच में बताया था कि कोशिश करने वालो की कैसी हार नहीं होती है।

यही वह मैच था जहां से भारतीय क्रिकेट ने परिवर्तन का करवट लिया था। फाइनल में पहुँचने के लिए भारत का जिसे जीता जाना आवश्यक था. पर कुछ दिन विशेष के होते है… भारतीय क्रिकेट के इतिहास में 18 जून का दिन बेहद खास है और भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कप्तान कपिल देव की पारी से बेहतर कोई पारी शायद ही हो। 40 साल पहले इसी दिन कपिल देव ने 1983 के क्रिकेट विश्व कप में जिम्बाब्वे के खिलाफ ये अद्भुत पारी खेली थी टनब्रिज वेल्स के नेविल ग्राउंड में खेला गया ये मैच सुनिश्चित हार से अद्भुत विजय की यात्रा की कहानी बन गया क्योंकि महान कपिल ने अपने बल्ले से बात की और आगे बढ़कर नेतृत्व किया।

138 गेंदों पर नाबाद 175 रनों की पारी वैसे भी शानदार है, खासकर उस युग में जब उस गति से रन बनाना दुर्लभ था, और खासकर तब जब यह उस समय ये रिकॉर्ड वनडे स्कोर था। लेकिन हालात ही हैं जो इसे खास बनाते हैं.

अधिकांश भारतीयों के लिए यह सोच पाना भी मुश्किल है कि सुनील गावस्कर मैच की दूसरी गेंद पर आउट हो जाएंगे, और श्रीकांत और अमरनाथ उनके तुरंत बाद पवेलियन लौट आएंगे, मामला और भी खराब तब हो गया जब चौथे विकेट के रूप में संदीप पाटिल आउट हो गए, भारत के 4 विकेट 9 रन के स्कोर पर गिर चुके थे और 17 रन पर पांचवां विकेट जा चुका था. 62 बॉल खेलकर भारत की आधी टीम पैवेलियन वापस पहुँच गयी थी। 49 ओवर 4 बॉल फेका जाना शेष था।

296 बॉल शेष थे औऱ भारत के पास कपिल देव के अलावा , रोजर बिन्नी,रवि शास्त्री मदनलाल,किरमानी औऱ बलविंदर सिंह शेष थे। याने कुल मिलाकर बॉलर्स औऱ विकेटकीपर।

कपिलदेव ने एक तरफ से आक्रमण शुरू किया और बिन्नी(22) औऱ किरमानी(24*) की मदद से 249 रन जोड़े। कपिल देव ने 138 बॉल(23 ओवर) में 175 रन की नाबाद पारी खेली। उस जमाने मे एक दो छक्के लग जाना बड़ी बात होती थी तब 6 छक्के कपिलदेव ने उड़ाये थे जिसमें से एक पैवेलियन का कांच तोड़ने वाला भी था। 16 चौके भी ताबड़तोड़ थे। 175 रन में 110 रन 4,औऱ 6 की मदद से बने थे। 128 रन का स्ट्राइक रेट तब के जमाने मे! सही मायने में उस दिन कपिलदेव ने 20-20 मैच की ही पारी खेली थी। ध्यान रहे वे जब खेलने आये थे टीम का स्कोर था 4 विकेट पर 9 रन. जाहिर है भारत ने मैच जीता और अगले चरण में पहुँचने का रास्ता साफ़ कर लिया और उसके बाद जो घटा वह अब इतिहास बन चुका है.

यह एक कल्पनातीत घटना थी जिसके घटने की हम सपने में ही उम्मीद कर सकते हैं. टनब्रिज वेल्स के नेविल ग्राउंड पर जिस दिन कपिल देव ने यह करिश्मा किया था, बदकिस्मती से कुछ कानूनी विवादों के चलते उस मैच की वीडियो रेकॉर्डिंग न हो सकी. यह अलग बात है कि उनके एक – एक शॉट की रेकॉर्डिंग जैसे लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों और स्मृतियों में सुरक्षित है जिन्होंने उस दिन कमेंट्री सुनी थी.


कपिल देव की इस पारी ने 1975 ke पहले विश्वकप में न्यूजीलैंड के ग्लेन टर्नर के 171 के रेकॉर्ड को ध्वस्त कर दुनिया के किसी भी देश में किसी भी खिलाड़ी द्वारा खेली गयी वनडे क्रिकेट की सबसे बड़ी पारी का नया कीर्तिमान स्थापित किया था.


जिम्बाव्वे, कपिलदेव की पारी को पार नहीं पा सका। इसी जीत ने भरोसे को स्थापित किया जिसके चलते भारत आगे जा कर सेमीफाइनल में इंग्लैंड और फाइनल में दो बार के विजेता वेस्टइंडीज को हरा कर नया विजेता बना।

कपिल देव, भारत की क्रिकेट टीम को नया स्वरूप देने वाले खिलाड़ी के रूप में आज भी सामयिक है।

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