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स्वस्थ शरीर के साथ-साथ स्वस्थ मन भी जरूरी, इन छह तरीको से रह सकते हैं फिट

दुनिया में लगातार प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। आधुनिक दुनिया युवाओं के दिमाग पर अत्याधिक दबाव डाल रही है और उन्हें लगातार तनाव, चिंता और अवसाद की ओर धकेल रही है। डॉक्टर्स के अनुसार हम जब भी स्वास्थ्य की बात करते हैं तो लोग स्वस्थ तन के बारे में सोचते हैं जबकि मन का स्वस्थ रहना भी जरूरी है, जिसका समाधान सिर्फ और सिर्फ दिमाग पर दबाव डालने से रोकना है।

लोगों को मानसिक बीमारी के बारे में शिक्षित करने के लिए हर साल 10 अक्तूबर को पूरी दुनिया में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है इस साल विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की थीम “मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है” रखी है जिसका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा और सुरक्षा प्रदान करना है।

6 कारक…जो प्रभावित करते हैं मानसिक स्वास्थ्य

  1. अनुवांशिकता: मानसिक स्वास्थ्य को कई बार अनुवांशिकता भी प्रभावित करती है कुछ विकार आनुवंशिकता के कारण होते हैं जैसे हंटिंगटन रोग। सिजोफ्रेनिया रोग के लिए एलील्स जिम्मेदार है। अल्जाइमर भी वंशानुगत है।
  2. गर्भावस्था: गर्भावस्था के दौरान मां की परेशानी शिशु में मानसिक विकार ला सकती है। गर्भवती नशे या अल्कोहल सेवन करती है तो भी दिक्कत होगी।
  3. रासायनिक असंतुलन : अवसाद के लिए मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन को भी जिम्मेदार माना जाता है। हालांकि कई अध्ययन इस सिद्धांत को नहीं मानते हैं।
  4. मनोवैज्ञानिक कारण : मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों में मनोवैज्ञानिक कारण अपनी बड़ी भूमिका अदा करते है। बचपन में गंभीर आघात, भावनात्मक- शारीरिक या फिर यौन शोषण… माता-पिता की हानि, उपेक्षा और दूसरों से संबंध स्थापित करने की खराब क्षमता।
  5. खराब पारिवारिक माहौल भी व्याक्ति को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में भी रोड़ा बनता है।
    मानसिक आघात : ऐसी घटनाएं, जो आपको शारीरिक या भावनात्मक चोट पहुंचाती है। यह आघात आप पर स्थायी प्रभाव डाल सकता है।
  6. सामाजिक कारण: जाति, वर्ग, लिंग, धर्म, परिवार, सहकर्मी नेटवर्क और हमारी सामाजिक भूमिकाएं सभी बीमारी का कारण हो सकती हैं।

अब हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसे 6 तरीके….जिससे आप स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ्य मस्तिष्क का भी निर्माण कर सकते है।

6 तरीके…जिससे तुरंत होगा सुधार, और मिलेंगे अच्छे परिणाम

सात में से एक भारत का युवा प्रभावित

एसोचैम के कोरोना महामारी से पहले के सर्वेक्षण के अनुसार भारत के निजी क्षेत्र में 40 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी अवसाद से ग्रस्त हैं। 2021 में एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार, 21-35 साल वर्ग के कामकाजी लोगों का एक बड़ा हिस्सा इससे प्रभावित रहा है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भारत में 1.5 करोड़ लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की जरूरत है।

क्या है यह मानसिक स्वास्थ्य?

स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ शारीरिक स्वस्थता से कभी नहीं होता। इसका मतलब शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य है। अगर मानसिक रोगों की बात करें तो अल्जाइमर, डिमेंशिया, चिंता, ऑटिज्म, डिस्लेक्सिया, तनाव, नशे की लत, कमजोर याददाश्त, भूलने की बीमारी और भ्रम इसके स्वरूप हैं। जैसे उदासी महसूस करना, ध्यान केंद्रित करने में कमी, दोस्तों से अलग होना, थकान और ज्यादा नींद इसके लक्षण हैं।

क्यों अक्सर छोड़ देते हैं इलाज

हमारे समाज में अभी भी मानसिक स्वास्थ्य को सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है। कई मामलों में परिवार में भी इलाज के लिए इच्छा शक्ति देखने को नहीं मिलती है। ऐसे मामले अक्सर देखने को मिलते हैं और इनकी वजह से उपचार में देरी से बीमारी और अधिक खराब स्थिति में पहुंच जाती है। पोस्ट-ट्रीटमेंट गैप में उपचार के बाद पुनर्वास बहुत जरूरी है लेकिन इस पर बहुत कम काम होता है।

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